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जैनहितैषी
प्रामाणिक नहीं मिलती, तो क्या हम उस आप ही जैसे ऐतिहासिककी लिखी हुई ऊँटपटाँग बातोंको मान लें ? - मुझे आशा नही कि भास्करसम्पादक इन बातों पर विचार करेंगे; परन्तु पाठकोंसे बहुत कुछ आशा है । वे ही इस बातका फैसला करेंगे कि वास्तवमें पद्मनन्दि और विनयसेन सेनसंघके आचार्य, थे या नहीं । इस विषयमें अब मैं आगे और कुछ न लिखूगा ।
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भट्टाकलङ्कदेव । श्रीमद्भट्टाकलङ्कस्य पातु पुण्या सरस्वती ! अनेकान्तमरुन्मार्गे चन्द्रलेखायितं यया॥
-ज्ञानार्णव । Verm दि गम्बरजैनसम्प्रदायमें समन्तभद्रस्वामीके बाद जि
म तने नैयायिक और दार्शनिक विद्वान् हुए हैं
उनमें अकलङ्कदेवका नाम सबसे पहले लिया
में जाता है। उनका महत्त्व केवल उनकी ग्रन्थरचनामें ही नहीं है-उनके अवतारने जैनधर्मकी तात्कालिक दशा पर भी बहुत बड़ा प्रभाव डाला था। वे अपने समयके दिग्विजयी विद्वान् थे। जैनधर्मके अनुयायियोंमें उन्होंने एक नया जीवन डाल दिया था । यह उन्हींके जीवनका प्रभाव था जो उनके बाद ही कर्नाटक प्रान्तमें विद्यानन्द, प्रभाचन्द्र, माणिक्यनन्दि, वादिसिंह, कुमारसेन जैसे बीसों तार्किक विद्वानोंने जन्म लेकर जैनधर्मको बौद्धादि प्रबल परवादियोंके लिए अजेय बना दिया था। उनकी ग्रन्थरचयिताके
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