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________________ पद्मनन्दि और विनयसेन । ४१७ करना चाहिए और वीरसेनके समयमें एलाचार्यका नाम सुनकर घबड़ा न जाना चाहिए । मेरा यह अनुमान है कि जब कुन्दकुन्दका नाम एलाचार्य नहीं था और एलाचार्य वीरसेनके समकालीन हैं तब संभव है कि उन्हींका नाम पद्मनान्द भी हो और इन पद्मनन्दीक दूसरे नाम एलाचार्यको, भ्रमसे पहले पद्मनन्दि अर्थात् कुन्दकुन्दके नामोंमें पट्टावलीके लेखक महात्माओंने जोड़ दिया हो । चकि दर्शनसारमें पद्मनन्दिको जिनसेनका पूर्ववर्ती आचार्य बतलाया है. इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि एलाचार्य ही वे पद्मनन्दि हो । खेद है कि सेठजी वातके समझे बिना ही दूसरोंपर आक्रमण कर बैठते हैं और मजा यह कि अपनी बातकी पुष्टिमें कोई प्रमाण देनेकी भी आवश्यकता नहीं समझते हैं। ____ यह पूछा गया है कि विनयसेन और पद्मनन्दिका उल्लेख जिनसेन णभद्रः हम्तिभल्लादिने तथा हरिवंशपुराणके कर्तान क्यों नहीं किया : इसका उत्तर यह है कि एक तो किसीके उल्लेख न करनेसे उनका अस्तित्व असिद्ध नहीं हो सकता; यह ग्रन्थकर्ताकी इच्छा है कि चाहे जिस आचार्यका स्मरण करे । आपके हरिवंशके कर्त्ताने वीरसेनका स्मरण किया है; परन्तु उनके समकालीन या कुछ पूर्ववर्ती अकलंक विद्यानन्द प्रभाचन्द्र आदि सुप्रसिद्ध विद्वानोंका स्मरण नहीं किया है जब कि आदिपुराणके कर्ता न इन सबका किया है। दूसरे हस्तिमल्ल बहुत पीछेके लेखक हैं । उन्होंने उन्हींका उल्लेख किया है जिनकी रचना उन्होंने देखी थी या जिनका नाम सुना था । पर विनयसेन और पद्मनन्दि ग्रन्थकर्ता नहीं मालूम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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