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पद्मनान्द और विनयसेन ।
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जिनसेन-जो कि सम्पूर्ण शास्त्रोंके ज्ञाता थे-श्री पद्मनन्दिके पश्चात् चारों संघोंका उद्धरण करनेमें समर्थ अर्थात् आचार्य हुए।
दूसरी तीसरी गाथाका अर्थ यह है कि फिर उनके शिष्य गुणवान् गुणभद्र हुए जो कि दिव्यज्ञानसे पूर्ण, :एक एक पक्षका उपवास करनेवाले, बड़े भारी तपस्वी और सच्चा मुनि लिङ्ग धारण करनेवाले थे। उन्होंने श्रीविनयसेन मुनिकी मृत्यु होने पर सिद्धान्तोंका उपदेश किया और पीछे वे भी स्वर्गलोकको सिधारे।
इन गाथाओंके आगेकी गाथाओंमें काष्ठासंघके उत्पादक कुमारसेनका जिक्र किया गया है और उसे विनयसेनका दीक्षित बतलाया है:
आसी कुमारसेणो णंदियडे विणयसैण दिक्खय ओ। सण्णासमंजणेण य अमहियपुणदिक्खओ जाओ॥
अर्थात् उक्त विनयसेन आचार्यका एक दीक्षित शिष्य कुमारसेन नन्दीतट नगरमें था । उसने एक बार संन्यास भंग करके फिर दीक्षा नहीं ली । इत्यादि। : इन गाथाओंके आधारसे मैंने निश्चय किया है कि वीरसेनके बाद जिनसेन, जिनसेनके बाद विनयसेन और विनयसेनके बाद गुणभद्र आचार्य हुए हैं। इसकी पुष्टिमें बहुतसी युक्तियाँ दी जा सकती हैं:- .
१ दर्शनसार इतिहासकी दृष्टिसे बहुत महत्त्वका ग्रन्थ है। उसमें प्रत्येक संघकी उत्पत्तिका संवत् तक दिया है । इसके सिवाय वह बहुत प्राचीन है। विनयसेन आचार्यसे लगभग १५० वर्ष
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