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शांति-वैभव। mmmmmmmmmmmmmmmmmmm अत एव प्रत्येक मनुष्यका कर्तव्य है कि अपनी उन्नतिमें सदा दत्तचित्त रहे; कठिनाई और भयके समय निराश न हो जावे । बहुतसी कठिनाइयाँ ऐसी होती हैं कि जब तक उनसे भय किया जाता है तब तक वे भारी मालूम होती हैं, परंतु जब उनके जीतनेका उद्योग किया जाता है तब वे कुछ भी नहीं रहतीं । ___ आत्मनिर्भर मनुष्य दूसरोंके यशके आश्रय पर कभी नहीं रहता । वह स्वयं अपने लिए विचार करता है, स्वयं ही उद्योग करता है, और अपने पर ही निर्भर रहता है। परंतु इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि ऐसा करते हुए हम अपने शुभचिन्तकोंकी शिक्षा भी न सुनें । यदि वे सच्चे भावसे हमें मार्ग बतलाते हों तो अवश्य सुनना चाहिए; परंतु सच्चे मित्र संसारमें बहुत कम मिलते हैं । सच्चे मित्रोंकी आवश्यकता भयके समय हुआ करती है, परंतु प्रायः ऐसा देखा गया है कि जो बड़े भारी मित्र बने होते हैं, वे भय या दुःखके समय 'टॉय टाय फिस' निकल जाते हैं । सुखके सब साथी हैं, दुखके समय सहायता करनेवाले बिरले ही बीर होते हैं । अतएव यह उचित है कि आपत्तिके समय मनुष्य अपने पाँव पर खड़े रहनेके योग्य हो । जितना वह आपत्तिका सामना करेगा उतना ही सबल होता जायगा और दूसरोंको भी सहायता देनेके योग्य होता जायगा । फिर उसके जीवनसे सदा दूसरोंको सहायता मिला करेगी और वह आत्मनिर्भरताके माहात्म्यका एक जीवित उदाहरण बन जायगा।
दयाचन्द्र जैन बी. ए.। चिरंजीलाल माथुर बी. ए.। ..
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