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जैनहितैषीmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm घेर लेगा और उसका सर्वनाश कर देगा । ऐसी जाति कभी स्वतंत्र नहीं हो सकती सदा दासत्वमें ही दबी रहती है। किसी जातिकी स्वतंत्रता इस बात पर निर्भर है कि उसमें आंतरिक शक्ति कितनी है और वह स्वयं अपनी स्थितिको अचल रख सकती है या नहीं। शत्रुसे सुरक्षित रहनेके लिए अपनेमें बलकी आवश्यकता है । यही हाल पृथक् पृथक् व्यक्तिका भी है । कारण कि मनुष्योंके समूहका नाम ही जाति है । पृथक् पृथक् व्यक्तियोंसे ही जाति बनती है । जातिका इतिहास पृथक् पृथक् व्यक्तियोंके जीवनचरितोंका संग्रह है । इतिहास और जीवनचरितमें यही भेद है। जातिके जीवनचरितका नाम इतिहास है और पृथक् पृथक् व्यक्तिके इतिहासका नाम जीवनचरित है । - यह एक मानी हुई बात है कि जो मनुष्य आपत्तिके समय दृढ़ रहता है और कठिनाइयोंको साहस और वीरतासे झेलता है वही अपनी आंतरिक शक्तिसे रह सकता है । उसको किसीके सहारेकी आवश्यकता नहीं है और न उसे किसीकी सहानुभूतिकी ज़रूरत है । वह स्वयं अपने पर ही निर्भर रहता है । यदि कभी कोई मनुष्य अथवा कोई समाज दूसरों पर निर्भर रहकर काम करता हो तो समझ लो कि उसकी अवनतिका समय आगया, उसके पतन होनेमें अब कुछ देर नहीं है । सबको ज्ञात है कि जबतक मुगल बादशाह स्वयं कार्यतत्पर रहे, मुगल साम्राज्यकी बढ़ती होती रही और मुगल बादशाह सम्पूर्ण भारतके अधिकारी बने रहे; परंतु ज्यों ही उन्होंने अपने कार्योंको अपने कर्मचारियों
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