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शांति-वैभव ।
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इसके विपरीत जिस मनुष्यमें आत्मनिर्भरता होती है उसके विचार और ही भाँतिके होते हैं । वह सदा इस बातके जाननेकी धुनमें लगा रहता है कि मुझमें कौन कौनसे अवगुण हैं और मैं उन्हें कैसे दूर कर सकता हूँ । उसको इस बातका पूर्णरूपसे निश्चय होता है कि सम्पूर्ण बाह्य प्रभावोंके जीतनेकी मुझमें शक्ति है। वह जानता है कि कठिनाइयोंका उपस्थित होना कोई अनहोनी बात नहीं है । जितने जितने बड़े बड़े महात्मा हुए है सबने अनेक दुःखोंका सामना किया है, बड़ी बड़ी आपत्तियोंको झेला है। आपत्तियोंसे डरना कायरोंका काम है । आपत्तियोंका सामना करना और सहन करनाही वीरता है । वह समझता है कि असफलता स्थायी नहीं है, क्षणमात्रके लिए है । असफलतासे निराश न होना चाहिए । उद्योग किये जाओ। एक दिन सफलता अवश्य होगी। जैसे रेलगाड़ीकी यात्रामें कभी कभी रास्तेमें डाट आजाती है तो थोड़े समयके लिए अँधेरा हो जाता है, परंतु डाटके निकलते ही उजाला हो जाता है। यही हाल जीबनका है । असफलताका अँधेरा कुछ समयके लिए रहता है फिर सफलताका उजाला आजाता है। ___ वह जाति सबसे अधिक बलवती होती है जिसमें आत्मनिर्भरताका गुण होता है जिसमें वे सब बात पाई जाती हैं, जो मनुष्योंके लिये आवश्यक हैं । यदि ऐसा नहीं है तो वह जाति बलहीन है। ऐसी जाति सदा शत्रुके पंजेमें दबी रहती है और उसका नाश होनेमें तनिक भी देर नहीं लगती । शत्रु उसे शीघ्र चारों ओरसे
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