________________
शांति-वैभव।
४०३
पर छोड़ा और वे स्वयं नाचरंग तमाशेमें लगे,त्यों ही अवनतिके चिन्ह प्रगट होने लगे और अंतमें मुगल राज्यका पटड़ा ही हो गया । यही हाल रोमदेशका हुआ । जबसे रोमवासियोंने स्वावलम्बनका त्याग किया और अपना कार्य युद्धमें पकड़े हुए कैदियों पर छोड़ दिया, उसी समयसे रोमदेशका पतन होने लगा और जातिमें आलस, भीरुता, दुर्बलता और कायरताने जोर पकड़ना शुरू कर दिया । इसीका परिणाम है कि रोम जैसा बलवान् क्षत्री विजयी देश बलहीन और साहसहीन होगया। दूसरों पर निर्भर रहनेसे मनुष्य निर्जीव और निर्बल हो जाता है और पुरुषत्वके गुण उसमेंसे निकल जाते हैं। यह बात अवश्य है कि आत्मनिर्भरताके लिए कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं • पर कठिनाई झेलना पुरुषाका काम है और संसारमें कर्तव्यका मार्ग है। बहुतसे मनुष्य ऐसे आलसी और दुर्बल हैं कि उनसे किसी कठिनाईका झेलना तो दूर रहा वे स्वयं अपने शरीरका मार भी नहीं उठा सकते । जाड़े गरमीकी तनिकसी तकलीफ़को भी नहीं सह सकते । ऐसे मनुष्य केवल भोगविलासोंमें ही रह जाते हैं
और वे संसारमें कुछ नहीं कर सकते । जिस समय ईरानका बादशाह नादिरशाह दिल्लीतक पहुँचा और उसने मारधाड़ मचानी शुरू कर दी, उस समय दिल्लीका बादशाह मोहम्मदशाह अपने महलोंमें पड़ा हुआ मौज कर रहा था । जब हाथ पैर जोड़नेसे नादिरशाहने शान्ति धारण करली और वह दिल्लीके सम्राट्से मिलनेको आया, उस समय दोनों सम्राटोमें जो बातचीत हुई वह उल्लेख करने योग्य है । मोहम्मदशाह बारीक तनजेबका कुरता पहने हुए
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org