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________________ सनातन जैनग्रंथमालामें छपे हुये प्राचीन सटीक संस्कृत प्राकृत ग्रंथ । दो वर्ष हुये बनारसमें एक सनातनजैनग्रंथमाला नामकी प्राचीन ग्रंथमाला निकलती है जिसमें नीचे लिखे प्रभावशाली ग्रंथ संस्कृतज्ञ व धर्मपिपासु जैन अजैन समस्त विद्वानोंके हितार्थ छपे हैं। कोई भी विद्वान् क्यों न हो इन ग्रंथोंको थोड़ासा बांचते ही इनकी महत्ताको नमस्कार करेगा। इन ग्रंथोंका सर्वसाधारणमें प्रचार करनेसे जैनधर्मकी बड़ी भारी प्रभावना होगी। इसलिये प्रत्येक जैनमंदिर जैनपाठशाला वा जैनलाइब्रेरी वा बाचनालयोंमें एक एक सीट अवश्य ही मगाकर संग्रहीत करना चाहिये और जो कोई भी संस्कृतज्ञ विद्वान् हो, वा आवे उनको दान करें वा देकर पढ़नेको कहेंगे तो बड़ा भारी लाभ होगा। दान करनेवालोंकेलिये बहुत ही किफायत की जाती है अर्थात् २७०) रुपयेके १० सीट ग्रंथ सिर्फ १००) रुपयोंमें भेज देते हैं । एक सीट ग्रंथोंका मूल्य २६ma) होते हैं सो सबकेसब ( एकसीट ) लेनेसे हम केवल १४) रुपयोंमें भेज देते हैं परंतु फुटकर (छूटा ) लेनेवालोंसे नीचे लिखी न्योछावर ली जाती है। १-२. आप्तपरीक्षा सटीक और पत्रपरीक्षा—ये दोनों ग्रंथ स्याद्वादविद्यापति सकलतार्किकचक्रचूडामणि श्रीविद्यानंदस्वामीके बनाये हुये हैं। आप्तपरीक्षापर टीका भी स्वोपज्ञ सविस्तर है। इसमें समस्त मतोंका निराकरण करके सत्यार्थ आप्तकी सिद्धि की है । यह ग्रंथ कलकत्ता गवर्नमेंटकी संस्कृत यूनिवर्सिटीकी जैनन्याय मध्यमापरीक्षामें भरती है। मूल्य २) रुपये। ३. समयप्राभृत ( समयसार नाटक ) दो टीका सहित छपा है। मूल ग्रंथ प्राकृतमें भगवत्कुंदकुंदस्वामीकृत है। इसपर जयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति और अमृतचंद्रसूरि कृत आत्मख्याति टीका साथमें है। जैनसमाजमें अध्यात्म विषयका ग्रंथ इसकी बराबर और कोई नहीं है । मूल्य ५.) रु. है। ४। तत्त्वार्थराजवार्तिक-यह ग्रंथ उमास्वामीकृत मोक्षशास्त्र तत्त्वार्थसूत्रोंपर स्याद्वादविद्यापति भट्टाकलंकदेव कृत बड़ी टीका है । जैनदर्शनकी यह बडी प्राचीन सर्वोपयोगी टीका है। किसी २ सूत्रपर तो चालीस २ वार्तिकें हैं और प्रत्येक वार्तिकपर विस्तृत व्याख्या है । जैनदर्शनके अपूर्व सिद्धांत जानने वाले विद्वानोंके लिये यह बहुत ही उपयोगी मनन करने योग्य ग्रंथ है । मू. ९) रु. -- ५. जैनेंद्रप्रकिया-पूज्यपाद गुणनंदिकृत-यह प्रसिद्ध अष्टव्याकरणोंमेंसे जगत्प्रसिद्ध जैनेंद्रव्याकरणसमुद्र में प्रवेश करनेके लिये नौकाकी समान बहुत ही . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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