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विविधप्रसंग।
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योको जैनसमाजका प्रत्येक व्यक्ति अपना कर्तव्य न समझने लगे तब तक इस पर्वकी सफलता नहीं कही जा सकती। इन सब बातोंके लिए इस पर्व पर प्रत्येक स्थानमें आन्दोलन होना चाहिए। प्रत्येक ग्राम, पंचायत या मन्दिरमें श्रुतपंचमीपर्वका उत्सव होना चाहिए और उस समय शास्त्रदान और शास्त्रसंग्रहकी कुछ न कुछ व्यवस्था अवश्य होना चाहिए । चाहिए तो यह कि प्रत्येक व्यक्ति ये पुण्यकार्य करें; परन्तु गदि न होसके तो कमसे कम पंचायतीकी
ओरसे एक दो नये ग्रन्थ प्रतिवर्ष लिखाकर मँगाये जायँ और भंडारमें संग्रह, किये जावें । यदि शक्ति कम हो तो छपे ग्रन्थ ही मँगाये जावें । कुछ ग्रन्थ विद्यार्थियोंको या स्वाध्यायप्रेमियों को बाँटे जावें -और कुछ रुपया सनातन जैनग्रन्थमाला, माणिकचन्द्र जैनग्रन्थमाला सिद्धान्तभवन जैसी संस्थाओंको दिया जावे । जो लोग समर्थ हैं, उन्हें किसी एक ग्रन्थके जीर्णोद्धार करानेका–छपाकर अर्धमूल्यमें या मुफ्तमें बाँटनेका भी इस पवित्र दिनको निश्चय करना चाहिए । यदि इस तरह पचास पंचायतियाँ ही विचार लेवें तो प्रतिवर्ष ५० ग्रन्थोंका उद्धार हो जाय । हमें इस अवसर पर प्रत्येक हृदयमें यह बात ठसार देनी चाहिए कि जैनधर्मकी रक्षा उसके ग्रन्थोंकी रक्षा-उसके प्रकाश और प्रचारसे ही होगी।
__९ माणिकचन्द्रजैनग्रन्थमाला। ग्रन्थमालाका कार्य शुरू होगया है । पहला ग्रन्थ सागार धर्मामृत सटीक छप रहा है, दूसरा हस्तिमल्लकृत विक्रान्तकौरवीय नाटक प्रेसमें हाल ही दिया गया है और तीसरे वादिराजसूरिकृत पार्श्व
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