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________________ जैनहितैषी । T ७ भवन और पुरातत्त्वविभाग । क्या ही अच्छा हो यदि जैनसिद्धान्तभवनकी ही एक 'पुरातत्त्वप्रकाशिनी ' शाखा खोल दी जावे और उसके द्वारा वह काम किया जाय जिसके लिए श्रीयुक्त विन्सेट स्मिथ साहबने धनिक जै नोंसे आग्रह किया है । क्योंकि पुरातत्त्वका कार्य भी भवन के उद्दे श्योंसे पृथक नहीं है । सम्मिलित संस्था रहने से काम भी सुभीते के साथ होगा । भवनके कार्यकर्ता यदि प्रयत्न करेंगे तो हमारी समझमें इसके लिए जैनसमाजसे सहायता भी अच्छी मिलेगी । भवन लिए जो यथेष्ट सहायता नहीं मिलती है इसका कारण सिवाय इसके और कुछ नहीं है कि उसके संचालक न तो उसका प्रबन्ध सुधारते हैं और न सहायता के लिए प्रयत्न ही करते हैं । 1 ५०२ ८ श्रुत पञ्चमी पर्व | ज्येष्ठ सुदी ५ फिर आ गई। अवसर आगया कि प्रतिवर्ष की नाई हम फिर भी अपने पाठकोंको इसकी चेतावनी दे दें । पर इस का फल क्या होता है ? यही कि दशवीस स्थानों में शास्त्रोंके वेष्टन बदल दिये जाते हैं और सरस्वतीकी पूजा कर दी जाती है। इस तरह यह भी और त्योहारों की तरह एक अभ्यस्त त्योहार बनता जाता है । पर क्या इसी लिए हम इस त्योहारकी पुनः प्रतिष्ठा करना चाहते हैं ? नहीं, जब तक प्रत्येक जैनके हृदयमें शास्त्रकी ज्ञा नकी प्रतिष्ठा और महत्त्व स्थापितं न हो जाय, प्राचीन शास्त्रोंकी रक्षा करना उनके ज्ञानका विस्तार करना, उनके लिए बड़े बड़े भंडार स्थापित करना, सुलभ वाचनालय खोलना, आदि पवित्र का - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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