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विविधप्रसंग।
और सारे भारतका बनानेके लिए ही स्वर्गीय बाबूसाहबने उसके स्थापित करनेका मनोरथ किया था । भवनके टूस्टियोंको इस ओर ध्यान देना चाहिए और भवनके संचालकोंसे दरयाफ्त करना चाहिए कि क्या कारण है जो वे भवनका स्थायी मन्दिर आरामें बनाना चाहते हैं।
यह भी पूछना चाहिए कि उसके सूचीपत्रादि बनानेका प्रबन्ध अबतक क्यों न किया गया ? जैनसमाज चाहता है कि भवनमें ग्रन्थोंका संग्रह बराबर होता रहे, सूचीपत्र सर्वसाधारणको देखनेके लिए मिले, नये नये ग्रन्थोंकी सूचना मिलती रहे, ग्रन्थोंकी प्रशस्तियाँ और महत्त्वकी बातें प्रकट करनेवाली रिपोर्ट छपवाई जावे, ग्रन्थोंकी नकल करानेका पूरा पूरा प्रबन्ध हो, लागतसे पाँच या दश रुपया सैकड़ा अधिक मूल्य पर जो चाहे उसे ग्रन्थ लिखाकर भेज दिये जावें, आवश्यकता होने पर चाहे जिस ग्रन्थकी प्राचीन प्रति उचित शर्तों पर बाहरके भाई भी देखनेके लिए मँगा सकें, ग्रन्थप्रकाशकों या सम्पादकोंको अधिक दिनोंके लिए ग्रन्थोंकी प्रतियाँ देनेका प्रयत्न किया जाय, पत्रोत्तर समय पर दिये जानेका प्रबन्ध हो, प्रश्न करनेवालेकी बातोंका संतोषयोग्य पूरा पूरा उत्तर दिया जाय और भवनमें बैठकर हर किसीको ग्रन्थ देखनेका सुभीता किया जावे । इन सब बातोंका प्रबन्ध हुए विना न जैनसमाज यथेष्ट लाभ उठा सकता है और न स्वर्गीय बाबूसाहबकी इच्छा व पूर्ण हो सकती है।
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