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________________ विविधप्रसंग। ४९७ महाशय कहते हैं-" इतिहास काव्य नहीं है । चित्तविनोदक ललित आख्यान अथवा सूखी छानवीन ही इसका अन्तिम फल नहीं है । अध्यापक ' सीली ' ने अच्छी तरह सिद्ध करके दिखाया है कि समाजनेता और राष्ट्रनेताके लिए इतिहास सर्वश्रेष्ठ शिक्षक, पथप्रदर्शक, और महान् बन्धु है । इतिहासकी सहायतासे भूतकालका स्वरूप जानकर उसी ज्ञानको वर्तमानमें प्रयोग करना होगा । बहुत प्राचीन कालमें हमारे पूर्वज किन कारणोंसे उठे किन कारणोंसे गिरे, राज्य समाज धर्म किस प्रकार गठित हुए, वे किस कारण नष्ट हो गये, इन सब तत्त्वोंको समझकर हमें अपने सजीव समाजकी गति बदलना होगी । भूतकालसे उद्धार "किया हुआ सत्य और दृष्टान्तोंकी दीपशिखा हमारे मार्गमें रोशनी डालेगी। यही इतिहासचर्चाका अन्तिम फल है।” आशा है कि हमारे पाठक इन अवतरणोंसे इतिहासके स्वरूपको बहुत कुछ समझ लेंगे और इतिहासके नामसे जो असत्य बातोंका प्रचार करते हैं उनसे बचे रहेंगे। . ५ मौर्य चन्द्रगुप्तका जैनत्व। भास्कर बड़ी धूमधामके साथ मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्तके जैनत्वका डंका पीट रहा है और अपनी ओरसे निश्चय कर चुका है कि वे निस्सन्देह जैन थे। पिछले अंकोंमें तो उसने उनके जैनत्व सिद्ध करनेके लिए कुछ चेष्टा भी की थी; परन्तु अब विन्सेट स्मिथ साहबके प्रसिद्ध इतिहासकी नवीन आवृत्ति प्रकाशित हो जानेसे तो वह उस चेष्टाकी भी आवश्यकता नहीं समझता है । उसे यह बात एक स्वयांसद्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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