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जैनहितैषी -
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का उद्देश्य क्या है, यह जानलेनेसे इतिहास लिखनेकी श्रेष्ठ: 'प्रणाली जानी जासकती है। जो सच्चा इतिहास है वह अतीतको सजीव बनाकर आँखों के सामने खड़ा कर देता है और हम मानों उसी बहुत प्राचीन समयके लोगों के शरीरमें प्रवेश करके उन्हीं के विचारोंसे विचारने लगते हैं और उनके सुख:दुख आशा भय आदिका अपने हृदय में अनुभव करने लगते हैं । इस तरह अतीत कालके सम्बन्धमें अविकल पूर्णाङ्ग सत्यकी प्राप्ति करना ही इतिहासका प्रकृत उद्देश्य है । इतिहास सत्यकी मजबूत पाषाणमय दीवालपर खड़ा रहता है | यदि उससे सत्य निर्धारित न हुआ, यदि अतीत कालकी एक मनमानी मूर्ति खड़ी करके अथवा आंशिक मूर्ति बनाकर ही हम शान्त हो गये, तब तो कहना होगा कि हम कल्पनाके है जगतमें रह गये । इसके बाद उस विषयमें हम चाहें जो लिखें या विश्वास करें वह सब बालूकी दीवाल पर तीनतला मकान बनानेके तुल्य होगा । सत्य निश्चित करनेकी पद्धति क्या है? सबसे पहले तो अपने मनको इस कार्यके योग्य और उपयोगी बनाना चाहिए । यश, धन, प्रतिष्ठा और लाभकी आशा दूर करके, अपने अन्तरंगका अनुराग विराग दमन करके, पूर्वके सब संस्कार त्याग करके पक्की प्रतिज्ञा करन चाहिए कि ‘ मैं आज अपनेको सत्यपर समर्पण कर दूँगा, मैं सत्यको समझँगा, सत्यको पूजुँगा और सत्यकी ही खोज करूँगा । ' सत्य चाहे प्रिय हो चाहे अप्रिय हो, लोग मानें या न मानें, लोग हँसी करे या निन्दा करें, उसको प्रकाश करना ही चाहिए । बस, इतिहासज्ञोंकी यही प्रतिज्ञा होती है। " आगे चलकर अध्यापक
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