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विविधप्रसंग।
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यदि वे शुरू शुरूमें इतना ही करें कि अँगरेज़ी आदि भाषाओंमें जैनधर्म और इतिहासके सम्बन्धमें जो लेख निकला करते हैं उनके अनुवाद ही देशभाषाओंके द्वारा सर्वसाधारण तक पहुँचानेका प्रयत्न करने लगें तो बहुत लाभ हो सकता है। आज कल जैनधर्म
और इतिहासकी आलोचनामें अँगरेजीमें इतने लेख निकलते हैं कि यदि सिर्फ उन्हींका अनुवाद प्रकाशित किया जाय तो एक अच्छे मासिक पत्रका काम चल सकता है । अनुवाद करते करते ही उनका अनुभव बढ़ जायगा और वे इतिहासके मौलिक लेख लिखने में भी समर्थ हो सकेंगे । हमारी पण्डितमण्डलीको भी इस ओर कुछ कृपा करनी चाहिए । उनके लिए एक विशाल कार्यक्षेत्र पड़ा हुआ है । संस्कृत प्राकृतके ग्रन्थोंका यदि वे अच्छी तरह अध्ययन करें, उनकी प्रशस्तियाँ मंगलाचरण आदि पढ़ें, और उनमें जिन जिन आचार्यों और विद्वानोंका उल्लेख मिलता है उनपर विचार करें तो अँगरेजी आदि भाषाओंकी सहायताके विना भी वे जैनधमके समस्त संघोंका गच्छों और आचार्योंका एक श्रृङ्खलाबद्ध इतिहास तैयार कर सकते हैं जिसकी कि बहुत बड़ी आवश्यकता है।
४ इतिहासका उद्देश और लाभ । हमारे यहाँ इतिहासके विषयमें बहुतसे भ्रामक विचार प्रचलित हो रहे हैं। इसका कारण यह है कि लोग वास्तविक इतिहासका स्वरूप नहीं जानते । यहाँ पर हम अध्यापक श्रीयुक्त यदुनाथ सरकारके व्याख्यानका--जो उन्होंने वर्द्धमानसाहित्यसम्मेलनमें पढ़ा था-- कुछ अंश उद्धृत किये बिना नहीं रह सकते । वे कहते हैं-"इतिहास
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