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जैनहितैषीwwwwwwwwwwwwwwwwwwwmmmmmmmmmmmm कम अँगरेजी, संस्कृत, प्राकृत और पालीका ज्ञान तो उसे अवश्य होना चाहिए । भारतवर्षके विषयमें जिन देशी और विदेशी विद्वानोंने अबतक जितना कुछ लिखा है वह सब पढ़ जाना चाहिए और इसके बाद इतिहासकी खोजामें हाथ लगाना चाहिए। इतनी योग्यताके बिना कोई प्रकृत इतिहासज्ञ नहीं बन सकता है। इसलिए जैनसमाजको चाहिए कि वह कुछ ऐसे विद्यार्थियों को जो इस विषयका शौक रखते हों और संस्कृतके साथ बी. ए. तक पढे हों खास वृत्तियाँ देकर इतिहासका अध्ययन करावे । इतिहासके एम. ए. हो जानेपर उन्हें कुछ समय इतिहासज्ञ विद्वानोंके पास रक्खे जिसमें वे अपने अनुभवको बढ़ावें और उसी समय अनेक भाषाओंका ज्ञान भी सम्पादन करें। इसके बाद उन्हें अपने पुरातत्त्वविभागमें नियत कर देवे और उनसे वह काम लेवे जिसके लिए स्मिथ साहब प्रेरणा कर रहे हैं। ३ शिक्षितोंको इतिहासका अध्ययन करना चाहिए।
परन्तु इस तरहके दशपाँच इतिहासज्ञ तैयार कर लेनेसे ही काम न चलेगा; अन्यान्य शिक्षित जनोंको भी इस ओर ध्यान देना चाहिए । जो सज्जन कालेजोंके प्रोफेसर, स्कूलोंके अध्यापक या वकील आदि हैं और जो संस्कृत तथा अँगरेज़ीकी योग्यता रखते हैं उन्हें चाहिए कि अवकाशके समय इस विषयकी ओर लक्ष्य दें और धीरे धीरे अपना ज्ञान बढाते जायें । शुरूमें उनके द्वारा नई खोजें भले ही न हों परन्तु सर्व साधारण लोगोंमें इतिहासके ज्ञानकी तो बहुत कुछ वृद्धि हो सकती है ।
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