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________________ विविधप्रसङ्ग । ४९३ यह काम मन्दिरप्रतिष्ठादि कार्योंकी प्रभावनासे हज़ार गुणी प्रभावना करनेवाला है और यदि एक ही दो प्रतिष्ठा करानेवाले सोच लें तो यह स्थायीरूपसे चल सकता 1 २ जैन समाज में इतिहासज्ञोंका अभाव । भारतवर्ष के प्राचीन इतिहासके सबसे अधिक साधन जैनपुस्तकालयों, जैनग्रन्थों, जैनमन्दिरों, और जैनलेखोंसे प्राप्त हुए हैं; परन्तु खेदका, नहीं नहीं लज्जाका विषय है कि जैनसमाजमें इतिहास के जाननेवालोंका एक तरह से सर्वथा अभाव दिखलाई देता है । समूचे जैनसमाजमें—तेरह लाख जैनोंमें- कई सौ ग्रेज्युएटों और पण्डितोंमें एक भी ऐसा विद्वान् नहीं है जिसे हम इतिहासज्ञ कह सकें और जिसके लिए हम कुछ अभिमान कर सकें । इतिहासज्ञ होना तो बहुत बड़ी बात है; अभीतक हमारे यहाँ वास्तविक इतिहासका स्वरूप समझनेवाले भी नहीं दिखते । साधारण मनोरंजन करनेवाली कथाओं में और इतिहासमें वे बहुत ही थोड़ा भेद समझते हैं । उन्हें नहीं मालूम है कि प्रकृत इतिहास क्या है, उसके तैयार करनेवालेमें कितना विशाल ज्ञान और नाना भाषाओंका पाण्डित्य होना चाहिए और वह कितने परिश्रमसे तैयार होता है । समय आ गया है कि अब हम अपनी इस कमीको पूर्ण करनेकी चिन्ता करें और दश पाँच इतिहासके विद्वान् तैयार करें । यों तो इतिहासके विद्यार्थीको समाज शास्त्र, अर्थशास्त्र, शिल्पशास्त्र, स्थापत्य, भास्कर्य, आदि सभी विषयों का थोड़ा बहुत ज्ञान चाहिए; परन्तु सबसे मुख्य बात है कि उसे विविध भाषाओंका और लिपियोंका ज्ञाता होना चाहिए । कमसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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