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जैनहितैषी
एकट्टे किये जावें । इस काममें यदि जैनविद्वान् नियत किये जायेंगे
और वे जैनदृष्टि से पुरानी बातोंकी खोज करेंगे तो इतिहासकी बड़ी बड़ी गाँठे खुल जावेंगी । जैनधर्मकी भीतरी बातोंको जाननेवाले इतिहासज्ञ लोग जो बड़ी बड़ी भूलें कर बैठते हैं जैसे जैनप्रतिमाओंको बुद्धप्रतिमा, जैनमठोंको बौद्धमठ, जैनधर्मकी यक्षयक्षियोंको बौद्धदेवदेवियाँ समझ लेना आदि, वे भूलें जैनविद्वानोंके द्वारा बहुत कम होंगी । हम विन्सेंट स्मिथ साहबके इस कथनसे सहमत हैं कि जैनसमाजके धनी रुपया खर्च कर सकते हैं और यदि वे चाहें तो उनके लिए इस काममें लाख दो लाख रुपया खर्च कर डालना कोई बड़ी बात नहीं है । पाठकोंको मालूम है कि बम्बईके पारसी धनिक टाटाके धर्मका या जातिका पटनासे कोई भी सम्बन्ध नहीं है, तो भी वे पटनाके खण्डहरोंकी खुदाईके लिए २५ हज़ार रुपया वार्षिक खर्च कर रहे हैं और वह केवल इसलिए कि भारतवर्षकी पुरानी राजधानी पटना या पाटलिपुत्रके विषयमें लोगोंको कुछ विशेष बातें मालूम हो । तब क्या जैनसमाजके धनिक श्रवणबेलगुलमें चक्रवर्ती राजा चन्द्रगुप्त और पूज्य भद्रबाहुके स्मारक ढूँढनेके लिए, कोशाम्बीमें अपने परमपूज्य तीर्थके प्राचीन चिह्न खोजनेके लिए, भगवान् महावीरके जन्म और निर्वाणस्थलोंका वास्तविक पता पानेके लिए, पाण्ड्य और द्राविडदेशके ह्यूनसांगके समयके हजारों जैनमन्दिरोंका अनुसन्धान करनेके लिए और इसी तरहके दूसरे कामोंके लिए जिनसे जैनधर्मकी कल्पनातीत प्रभावना हो सकती है, लाख दो लाख रुपया खर्च कर नहीं सकेंगे? विचार करके देखा जाय तो
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