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इतिहासप्रसङ्ग।
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(११) वादिराजमूरिका एक अप्रसिद्ध ग्रन्थ । एकीभाव, पार्श्वनाथकाव्य, यशोधरकाव्य आदिके कर्ता वादिराज बड़े भारी नैयायिक थे, यह बात प्रसिद्ध है। इसी लिए उन्हें ' वादिराजमनुतार्किकसिंहः' कहा है; परन्तु अभी तक उनका कोई न्याय ग्रन्थ नहीं मिला था। अब उनके एक न्यायग्रन्थका पता लगा है जो भट्टाकलंकदेवके । न्यायविनिश्चय' की टीका है । इसका नाम है ' न्यायविनिश्चयविवरण ' अथवा ' न्यायविनिश्चयकी तात्पर्यावघोतिनी व्याख्यानरत्नमाला'। यह ग्रन्थ आराके सिद्धान्तभवनमें मौजूद है। पूज्य पं. पन्नालालजीके पास जो प्रशस्ति संग्रह है उसके देखनेसे मालूम हुआ कि यह वादिराजसूरिका ही है। यद्यपि प्रशस्तिमें वादिराजका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इसके अन्तमें लिखा है:--
" श्रीमत्सिंहमहीपतेः परिषदि प्रख्यातवादोन्नतिःस्तर्कन्यायतमोपहोदयगिरिः सारस्वतः श्रीनिधिः । शिष्य श्रीमतिसागरस्य विदुषां पत्युस्तपश्रीभताम् भर्तुः सिंहपुरेश्वरो विजयते स्याद्वादविद्यापतिः । इत्याचार्यवर्यस्याद्वादविद्यापतिविरचितायां न्यायविनिश्चियतात्पर्यावद्योतिन्यां व्याख्यानरत्नमालायां तृतीयप्रस्तावः समाप्तः।"
स्याद्वादविद्यापति वादिराजका उपनाम है । सिंहमहीपति या चौलुक्य जयसिंहकी सभाके वे प्रसिद्ध वादी थे। मतिसागर मुनिके शिष्य थे और सिंहपुरके स्वामी थे । इन विशेषगोसे जरा भी शंका नहीं रहती है कि यह ग्रन्थ वादिराजका ही है। विद्वद्रत्नमालामें जो ' वादिराजसूरि' शीर्षक लेख है उसके पढ़१ देखो, विद्वदलमाला पृष्ठ १४१। २ देखो श्रवणबेलगुलकी मलिषेणप्रशस्ति । ।
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