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________________ इतिहासप्रसङ्ग । ४८७ स्थान दिया और कहा कि आप हमारे पूर्वजोंके चरितका वर्णन करनेवाला एक ग्रन्थ रच दीजिए। मदनकीर्तिने कहा, मैं ५०० श्लोक प्रतिदिन रच सकता हूँ; पर उनके लिखनेवालेका प्रबन्ध हो जाना चाहिए । राजाने अपनी पुत्री मदनमंजरीको यह काम सौंप दिया और वह परदेकी ओटमें बैठकर ग्रन्थ लिखने लगी । कुछ समयमें दोनों परस्पर मोहित हो गये और एक दूसरेकी प्राप्तिका उपाय करने लगे । अब ग्रन्थरचनामें बाधा पडने लगी। श्लोक कम रचे जाने लगे । राजाको सन्देह हो गया। उसने एक दिन छुपकर देखा । उस समय मदनकीर्ति अपनी प्रणयिनीको सुन्दर सुन्दर श्लोक कहकर मना रहा था। राजाको विश्वास हो गया। उसे बड़ा क्रोध आया। उसने तत्काल ही अपने स्थान पर पहुँचकर मदनकीर्तिको बुलाया और उस श्लोकका अर्थ पूछा। मदनकीर्ति ताड़ गया, इसलिए तत्काल सँभलकर बोला “दो दिनसे मेरी आँखें आ रही हैं, इसलिए उनका अनुनय करनेके लिए मैंने यह पद्य बनाया था।" आश्चर्य यह कि आँखोंके पक्षमें भी उक्त श्लोक. ठीक बैठ गया। राजाको उसके इस बुद्धिवैचित्र्यसे हृदयमें आनन्द हुआ; पर अपकृत्यका ख़याल करके उसने उसे मार डालनेकी आज्ञा दे दी। मदनमंजरीने यह समाचार सुन लिया । वह तत्काल ही अपनी ३२ सखियोंको साथ लेकर आई और अपने प्यारेके साथ परनेको तैयार हो गई ! यह देख मंत्रियोंने राजाको समझाया कि : इसमें आपका ही दोष है जो एक युवा और युवतीको समीप रहनेका अवसर दिया । युवावस्थाका यह स्वभाव ही है। अब आप क्रोध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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