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________________ ४८६ जैनहितैषी - कीर्ति यतिपति और उदयसेन मुनि आदि कई दिगम्बर जैन विद्वान् थे। इनमेंसे विशालकीर्तिने आशाधर के पास पदर्श और न्याय शास्त्रोंका अध्ययन किया था । मदनकीर्ति विशालकीर्ति शिष्य थे । इन मदनकीर्तिका उल्लेख भी आशाधरने अपने ग्रन्थोंक प्रशस्तिमें किया है । मदनकीर्तिने आशाधरको प्रज्ञापुंज कहा था" प्रज्ञापुञ्जोसि च योऽभिहतो मदनकीर्तियतिपतिना । " मदनकीर्तिको यतिपति कहा है । इससे मालूम होता है कि वे जैनसा । थे । इन्हीं मदनकीर्तिके विषयमें एक लेख ' चतुर्विंशतिप्रबन्ध नामक ग्रन्थमें हमने अभी हाल ही पढ़ा है । ' चतुर्विंशतिप्रबन्ध' श्वेताम्बराचार्य राजशेखरका बनाया हुआ संस्कृत ग्रन्थ है । इसमें प्राचीन आचार्यों और विद्वानोंके २४ चरित हैं । ग्रन्थ वि० संवर १४०५ का बना हुआ है । गायकवाड़ सरकारने इसका गुजरात अनुवाद प्रकाशित करवाया है । इस कथा से मालूम होता है कि मदनकीर्ति अपने चरित्रसे गिर गये थे । कथाका सारांश यह है :“ उज्जयिनी में विशालकीर्ति नामक दिगम्बर साधु थे । उनका मदन कीर्ति नामक शिष्य था । उसने चारों दिशाओंके वादियोंको पराजित करके ‘ महाप्रामाणिक' पदवी प्राप्त की और अपने गुरुकी कीर्ति फैलाई एक बार उसने दाक्षिणात्य वादियोंको जीतने की इच्छा प्रकट की गुरुके रोकने पर भी वह दक्षिणकी ओर चल दिया और बड़े बड़े विद्वानोंको पराजित करके कर्णाटकमें पहुँचा । वहाँ विजयपुर नरेश कुन्तिभोज राजाकी सभा में जाकर उसने अपने पाण्डित्यसे राजाको मोहित कर लिया । राजाने उसे अपने महलके पास ही ठहरनेको 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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