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________________ २२६ जैनहितैषी आपके समयमें दान लेनेवाले वर्णकी ज़रूरत थी, पर इस समयमें एक दान करनेवाले-कन्यादान करनेवाले वर्णकी जरूरत है । उसका काम यह रहे कि मेरे जैसे अविवाहित युवकोंके प्रार्थना करते ही वह उनके लिए कन्यायें ढूँढकर विवाह कर दिया करे। ___ आपके जमानेमें जब आपके ९६ हज़ार स्त्रियाँ थीं तब औरोंके भी हजारों नहीं तो दो दो चार स्त्रियाँ अवश्य होंगीं । इससे मालूम होता है कि उस समय पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियोंकी संख्या अधिक होगी–अर्थात् लड़कियोंकी पैदायश लड़कोंसे कई गुनी ज्यादह होगी । परन्तु आजकल यह बात नहीं है । लड़कियोंकी पैदायश ही कम होने लगी है। क्या इसके लिए भी . आप कोई तरकीब बतलाइएगा ! हाँ, आदिपुराणसे यह भी मालूम हुआ कि आपने म्लेच्छोंकी कई हजार कन्याओंके साथ विवाह किया था । इस रिवाजका पता भगवान् महावीरस्वामीके समय तक लगता है । सम्राट चन्द्रगुप्तने म्लेच्छ राजा सेल्यूकसकी बेटीके साथ विवाह किया था और चन्द्रगुप्त 'जैनासिद्धान्त भास्कर' के लेखोंसे मालूम होता है कि जैन थे। ' कन्यारत्नं दुष्कुलादपि ' का वचन भी यही बात कहता है। क्या आप जैनसमाजके मुखियोंके पास एक पत्र नहीं भेज सकते जिससे वे "और और जातियोंकी कन्यायें लेलेनेमें कोई हर्ज नहीं है" इस तरहका एक नियम जारी कर दें ? कमसे कम अपने वर्णकी किसी भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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