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________________ विविध-प्रसंग. २२७ जातिकी कन्या लेलेनेमें तो कोई रुकावट न रहे । मेरी समझमें आपकी चिट्ठीसे यह काम ज़रूर हो जायगा। ___ उत्तर ज़रूर भिजवाइए, चिट्ठीके साथ एक टिकट भेजा जाता है। मेरे नामके साथ ' बम्बई नं. ४ ' लिखदेनेसे मुझे पत्र मिल जायगा ! काशलीवाल जैन । नोट-यह चिट्ठी 'डेडलैटर आफिस' की हवा खाकर हमारे पास आई है। भेजनेवालेके नामके साथ 'जैन ' लिखा रहनेसे पोस्टमेन हमारे यहाँ डाल गया है । लेखक महाशयने यह नहीं सोचा कि भरत महाराज मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं; उनतक पत्र कैसे पहुँचेगा और उत्तर कौन देगा । आप डॉकका टिकट भेजना भी नहीं भूले हैं । मानों वहाँ भी डॉकखाने खुले हुए हैं ! बलिहारी ! सम्पादक। विविध-प्रसंग। १ सेठीजीके विषयमें प्रयत्न । पा से ठीजीके विषयमें आन्दोलन होने लगा है और REAN संतोषका विषय है कि वह बहुत अच्छे ढंगसे प्रारंभ हुआ है। अनेक सज्जनोंने जिनका क नाम प्रकाशित करनेकी इस समय आवश्यकता नहीं है इस महीनेमें खूब ही दौड़ धूप और मेहनत की है और उन्होंने इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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