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________________ जैनहितैषी। श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात्सर्वज्ञनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ wwwwwwww ११ वाँ भाग माघ, वीर नि० सं० २४४१।१ अंक ४ शांति-वैभव। 8 शां ति मनुप्यके जीवनमें एक अमूल्य वस्तु है । इस पर ऐसे महान् जीवनका आधार है कि जिसकी आंतरिक गति और उद्देश्योंमें पणेतया सहानुभूति है । शांति उस स्थान पर पाई जाती है जहाँ स्वाधीन, स्वावलम्बशील और सच्चरित्र मनुष्योंका वास होता है। ति क्या वस्तु है ? दृढ़ प्रतिज्ञा, उद्देश्यकी स्थिरता, आत्मनिर्भरता और आत्मबलका नाम ही शांति है। __ शांतिका अर्थ यह नहीं है कि मनुष्य बिलकुल आलसी, निरुद्योगी और साहसहीन होकर बैठ जावे । ऐसा होना तो मौतकी निशानी है, कारण कि इसमें तमाम शक्तियाँ बेकार हो जाती हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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