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जैनहितैषी -
और जीवन बिलकुल नीरस हो जाता है। जिसको शान्ति प्राप्त है उसका जीवन तो सरस और आनन्दमय होता है ।
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जो मनुष्य केवल दैव पर भरोसा रखता है उसे कभी शांति नहीं मिल सकती । वह अपनी वर्तमान स्थितिसे तनिक भी आगे नहीं बढ़ता और भविष्य की कोई चिंता नहीं करता । वह काय और पुरुषार्थहीन होता है । उसके मुँह में यदि कोई डाल देता हैं तो खालेता है, नहीं तो योंही पड़ा रहता है । वह स्वयं कुछ नहीं करता । उसकी दशा उस बिना चप्पू (?) की नौकाके सदृश है जो यही किसी व्यवस्था के बिना समुद्र में छोड़ दी गई हो । न उसके पास कम्पास है, न समुद्रका नकशा है और न यही उसे मालूम है कि मुझे कहाँ जाना है । जिधर हवा ले जाय वह उसी तरफ बहा चला जाता है । उसका जीवन बड़ा अनियमित और बेका यदा है । न कोई उसका संकल्प होता है, न उद्देश्य होता है और न कोई कार्यप्रणाली होती है। ऐसे मनुष्यको कभी शांति नहीं मिल सकती । ऐसी गतिको हम कभी शांति नाम नहीं दे सकते ।
इसके विपरीत जिस मनुष्यको शांति होती है उसका जीवन बहुत ही नियमित और बाकायदा होता है । उसका उद्देश्य पहलेसे निर्दिष्ट रहता है और वह सदा निश्चित मार्गका अनुगामी होता है। चाहे मार्गमें कितनी ही आपत्तियाँ आवें, चाहे कितनी ही हानियाँ उठानी पड़ें, परंतु वह धीरवीर अपने उद्देश्यसे तनिक भी चल - बिचल नहीं होता और अपने मार्गसे कभी पीछे नहीं हटता; निर्भय रूपसे
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