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________________ विविध प्रसंग। १३१ बहुतसे वंश और देश जानवरोंके नामोंसे प्रसिद्ध हैं। देशस्थ ब्राह्मणोंके टटू, रेडे ( पाडा या भैंसा ) आदि उपनामों या अटकोंको तो सभी जानते हैं; परन्तु दक्षिणके इतिहासमें माहिषिक और मूषक लोगों तकका पता लगता है। वर्तमान महसूरराज्य माहिषोंका ही वंशज है और महिषपुरका अपभ्रंश होकर महसूर बन गया है।" जैनोंके यहाँ जो राम-रावणकी कथा है उसमें भी यही कहा है कि वानरवंशी वे कहलाते थे जिनकी ध्वनाओंमें तथा मुकुटोंमें वानरका चिन्ह था । वे श्रेष्ठ क्षत्रिय मनुष्य थे; जंगली लोग या बन्दर नहीं थे। जैनरामायणमें यह भी बतलाया है कि वानरवंशियोंके कुलमें वानरका चिन्ह क्यों पसन्द किया गया था । इसके विषयमें एक कथा भी लिखी है । जैनरामायणकी बतलाई हुई यह बात उस समय और भी विशेष महत्त्वकी और माननीय जान पड़ते लगती है जब कि हम उसकी प्राचीनताका विचार करते हैं । इस विषयके उपलब्ध संस्कृत ग्रन्थों में सबसे प्राचीन कथाग्रन्थ संस्कृत पद्मपुराण है जो कि रविषेणाचार्यका बनाया हुआ है और जो वीर निर्वाण संवत् १२०४ में अर्थात् आजसे लगभग सवा बारह सौ वर्ष पहले बना है। अभीतक लोग इसे ही सबसे पहला रामकथाका जैनग्रन्थ समझते थे; परन्तु अभी हाल ही 'पउमचरिय' नामक प्राकृत ग्रन्थका पता लगा है जो कि उससे बहुत पहले वीर निर्वाण संवत् ५३० अर्थात् विक्रम संवत् ६० का बना हुआ है। अर्थात् आजसे लगभग दो हजार वर्ष पहले भी जैनसम्प्रदायके अनुयायियोंका यह विश्वास था कि वानरवंशी लोग बन्दर नहीं किन्तु मनुष्य थे-ध्वजाओंमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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