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________________ जैनहितैषी वानरका चिन्ह रहनेके कारण वे वानरवंशी कहलाते थे। इसी बातको माननीय वैद्यजीने कहा है। हमें विश्वास है कि वैद्यमहाशयने जैनरामायणकें इस भागका अवलोकन अवश्य किया होगा; क्योंकि आपका जैनोंसे अच्छा परिचय रहा है। यदि न किया हो तो हम आशा करते हैं कि अब अवश्य ही करेंगे और इस विषयको और भी अधिक स्पष्ट रूपमें विद्वानोंके समक्ष उपस्थित. करेंगे। ३ सबसे प्राचीन जैन ग्रन्थ । पुराणोंमें सबसे पुराना जैनपुराण श्रीरविषेणाचार्यका पद्मपुराण समझा जाता है । यह वीर निर्वाण संवत् १२०४ का बना. हुआ है । यथाःद्विशताभ्यधिकेन समा सहस्र समतीते/चतुर्थवर्षसंयुक्ते । जिनभास्करवर्द्धमानसिद्धे चरितं पद्ममुनेरिदं निबद्धम् ॥ अब तक इसके पहलेका बना हुआ कोई भी पुराण उपलब्ध नहीं था । हरिवंशपुराण, आदिपुराण आदि भी इसके पीछेके बने हुए हैं। पुष्पदन्त कविके प्राकृतपुराण तो आदिपुराणसे भी पीछेके हैं । जहाँ तक हम जानते हैं अभीतक श्वेताम्बर-सम्प्रदायका भी कोई पुराण ग्रन्थ इससे पहलेका प्राप्त नहीं हुआ है। परन्तु अभी एक नये ग्रन्थका पता लगा है जिसका नाम 'पउमचरिय ' है और पाठक यह जानकर और भी प्रसन्न होंगे कि इस ग्रन्थको भावनगरकी जैनधर्मप्रसारक सभाने छपा कर प्रकाशित भी कर दिया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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