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________________ १९० जैनहितैषी - स्त्रीका इतना भारी आदर करते हैं उन्हींके घरमें तीर्थंकर सरीखे पुत्र उत्पन्न हो सकते हैं, जो कि तीनों लोकका उद्धार कर अपना भी परम कल्याण करनेवाले हैं। इस उदाहरणको देखकर उन्हें संतोष करना चाहिए जो स्त्रीको सदा बैरोंमें कुचलना पसंद करते हैं; अपनी केवल दासी समझते हैं और उसका आदर करनेमें या होने देनेमें पुरुषजातिका अनादर समझते हैं या पाप समझते हैं । - पं० वंशीधर शास्त्री । ( जैन मित्र, अंक ६ ) आदर्शका अदर्शन | समाजनेता महाशयो, आपलोग रूढियोंके, समाजके, धर्मगुरुओं के और राजाके झूठे-माने हुए डरसे लोगोंके सामने वास्तविक आदर्श नहीं रखते हैं और सत्यका जानबूझकर खून करते हैं; परन्तु याद रखिए आपको इसका बदला ज़रूर मिलेगा । समाजके एक समूहको वर्षोंतक दुःखमें पड़े रखनेवाले - पापमें डालनेवाले आप ही लोग हैं । आप दूसरोंको ' पुनर्जन्म' और 'कर्म' के सिद्धान्तका उपदेश दिया करते हैं; परन्तु इस सिद्धान्त में यदि आपको ही श्रद्धा होती तो वास्तविक आदर्शको समाजके सामने निडर होकर रखने में आप कभी आनाकान न करते । लड़ाईके मैदान में दश बीस रुपये महीने की तनख्वाह के लिए प्राणन्योछावर करदेनेका साहस करनेवाले तो बहुत मिलते हैं; परन्तु सत्यका जो स्वरूप आपने समझा हो वही स्वरूप समाजको आदर्श के रूप में समझानेकी हिम्मत बहुत थोड़े लोगों में होती है । यदि मैं किसी बात का सत्यस्वरूप स्पष्टशब्दोंमें प्रतिपादन करूँगा तो अमुक प्रचलित रीति या रूढ़ी पर चोट पहुँचेगी और इससे उस रूढ़ीके गुलाम मेरी निन्दा करेंगे, अगुए शत्रु बन जावेंगे, धर्मगुरु या पण्डितजन अपनी भेड़ोंको मेरे विरुद्ध उत्तेजित कर देंगे, और प्रचलित राजनीतिके किसी नियमका भंग होने से मुझे सजा मिलेगी । इस प्रकारके भयोंके वशीभूत होनेका परिणाम यह हुआ है कि वास्तविक आदर्शका दर्शन इस देशमें बहुत कठिन होगया है और यही इस देशके आत्मिक मरणका कारण है । इस आत्मिक मरणसे राजकीय परतंत्रता आदि अनेक फल उत्पन्न होते हैं । —समयधर्म । जैनहितेच्छु अंक ९-१० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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