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________________ जयपुरराज्य, अँगरेज़ सरकार और सेठीजीका मामला। १५९ NAVvvvvvvvvvvvvv संभावना हो सकती है ? यह हवाई खयाल-यह बहमका भूत जैनजातिकी चिरकालकी कीर्तिको मैली कर देगा और इस बिलकुल असत्य तथा हानिकारक भ्रमको स्थान देगा कि जयपुर राज्यमें भी ब्रिटिश-शासनके विरुद्ध विचारोंको पोषण मिलता होगा। इसी लिए हम चाहते हैं कि इस प्रश्न पर गंभीरतासे विचार किया जाय और उस मार्गको अंगीकार करनेकी दूरंदेशी दिखलाई जाय जिससे कि राज्य और जैनप्रजा दोनोंका विशेष हित हो । __ हिरासतमें देवदर्शनकी रुकावट ! और सो भी हिन्दराज्यमें ! हिन्दमाता, अब तुझे भविष्यके सुखकी झूठी आशायें देकर अपने सन्तानोंको व्यर्थ ही भुलाये रखनेकी चेष्टा न करनी चाहिए । जिस दुर्भाग्यसे आर्यभूमिके पैरोंमें मुगल आदि राजाओंकी बेड़ी पड़ी थी उसकी अपेक्षा यह दुर्भाग्य बहुत ही दुःखदायक है कि आर्यधमरक्षक राजाओंकी धर्मभावना पर जड़वादियोंका इतना गहरा प्रभाव पड़ गया ! इस दुःखको महनेकी अपेक्षा तो यही अच्छा है कि हिन्दका विलकुल ही अन्त हो जाय । मेरा विश्वास है कि धर्मभावनाकी सबसे अधिक आवश्यकता अपराधियोंके लिए-जेलके कैदियोंके लिए है और सभ्य देशोंकी जेलों में तो धर्मोपदेशका खास प्रबन्ध रहता है-कैदियोंको धर्मग्रन्थ भी बाँचनेके लिए दिये जाते हैं कि जिससे उनमें नीति और धर्मके भाव उत्पन्न होकर बढ़ते रहें। जो हिन्दूराज्य स्वयं मूर्तिपूजक है और जो सैकड़ों देवमन्दिरोंके खर्चके लिए राजभंडारसे हजारों रुपया प्रतिवर्ष देता है, वह मालूम नहीं किस धर्मदृष्टिसे जिनदेवके दर्शन करनेकी अपने एक कैदीको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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