________________
१६०
'जैनहितैषी -
मनाई करता है । क्या जयपुर राज्यको यह भय है कि छोटेसे छोटे जीवकी रक्षाका उपदेश देनेवाले और कानोंमें कीले ठोकनेवाले शत्रुको तथा अत्यन्त दुःखप्रद डंक मारनेवाले साँपको भी क्षमा कर देनेवाले जिनदेवकी मूर्तिके दर्शनसे एक कैदीको खून या राजद्रोह करनेकी उत्तेजना मिलेगी ? यह बात निःसन्देह होकर कही जा सकती है कि किसी भी दयासागर और शान्तदेवकी मूर्ति मनुष्यको कोई बुरा काम करने में प्रवृत्त या उत्तेजित नहीं कर सकती । तब क्या एक हिन्दूराज्यके लिए हिन्दुओंके धर्मव्रत - देवदर्शन के नियमको जबर्दस्ती बन्द कराना उचित हो सकता है ? किसी मनुष्यने चाहे जितना बड़ा अपराध किया हो; परन्तु उसे उसके धर्मसे भ्रष्ट करनेकी किसी भी सरकारको सत्ता नहीं है । अपराधीको शारीरिक कष्ट पहुँचाने के लिए कड़ेसे कड़े नियम बनाये गये हैं; मरन्तु उसके धर्ममें अन्तराय डालने की सत्ता आज तक किसी परमेश्वरने, देवने या प्रजाने किसी भी राजाको नहीं दी है ।
अलाहाबाद के ' लीडर' में सेठीजीके सम्बन्ध में 'जस्टिस' नामधारी महाशयने जो लेख छपवाया है वह प्रायः सभी प्रसिद्ध पत्रोंमें प्रकाशित हो चुका है । उसमें ब्रिटिश सरकारसे सेठीजीके विषयमें बीसों प्रश्न किये गये हैं जिन सबका सारांश यह है कि किसी प्रकारका अपराध सिद्ध न होने पर जयपुर राज्यके द्वारा उनको व्यर्थ कष्ट क्यों दिलाया जा रहा है ?
जस्टिसके प्रश्नोंसे अदूरदर्शी लोग इस तरहका अनुमान करने लगते हैं कि सेठीजीको कैद रखनेके लिए ब्रिटिश सरकारने ही शायद कुछ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org