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________________ जैनहितैषी - प्राचीन मैसूरकी एक झलक । जिस जातिमें कमज़ोरी आजाती है और फिर भी वह सोया करती है, उसका अवश्य नाश होता है । यह नियम है कि संसारमें कमजोरोंको कोई जीवित नहीं रहने देता । केवल बलवानोंको ही जीनेका अधिकार है । संसारके इतिहास में ऐसी अनेक जातियोंके नाम मौजूद हैं, जिनका अब पता भी नहीं है । अतएव जो जाति अपने बलको कायम नहीं रख सकती उसका दुनियामें कहीं भी ठिकाना नहीं । इतिहास इस बातका साक्षी - है कि वे पतित जातियाँ जो पहले कभी श्रेष्ठ रह चुकी हैं पुनः उन्नत हो गई हैं; परन्तु उन्होंने अपनी उन्नति अपने ही उद्योग और बलसे की है । उन जातियोंने जब अपने प्राचीन गौरवको अपने इतिहास में देखा तब उनमें उत्साहका संचार हो गया । उत्साह संचारसे उद्योग प्रारंभ हुआ और उद्योगसे उन्नति हुई । जैनसमाजकी दशा आज बड़ी ही शोचनीय है । क्या इसमें भी उत्साह का संचार हो सकता है, जैसा अन्य जातियों में हुआ है? अवश्य हो सकता है । जिन कारणोंसे उनकी उन्नति हुई है उनका प्रयोग करने से उन ही जैसा परिणाम होगा । यदि जैनसमाजके सामने उसके प्राचीन गौरवका इतिहास रक्खा जायगा तो उसमें भी उत्साहके दर्शन होने लगेंगे; परंतु इतिहास आये कहाँसे ? ' यह एक बड़ा भारी - प्रश्न जैन विद्वानों * Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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