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________________ प्राचीन मैसूरकी एक झलक । के मामने उपस्थित है । बहुत से जैनग्रंथ और अन्य आवश्यक सामग्रियाँ नष्ट हो चुकी हैं । यदि अब भी जैनसमाज बची हुई सामग्रीकी रक्षा करना मीग्व जाय तो बहुत कुछ ऐतिहासिक साधन मिल सकते हैं । यदि जैन विद्वान् इसी बची खुची सामग्री-- ग्रंथ इत्यादि को लेकर परिश्रम करने लग जाय, तो जैन-इतिहासके बहुत में अंगोंकी पूर्ति हो जाय । देखना है कि जैनसमाज इस बातको कव समझता है ! परन्तु याद रहे कि इन वचेवचे साधनोंको भी समाज ग्वा बटा. तो इसका भयंकर परिणाम यह होगा कि जैनसमाजका भी मंमारके इतिहासमें केवल नामही नाम रह जायगा । मैकड़ों ग्रंथरत्न---जो हमारे प्राचीन गौरवके आधार थे-सदैवके लिए खो गये । कभी कभी हमारी सरकारकी कृपासे हमें अपने प्राचीन गौरवकी एकाध झलक दिखाई दे जाती है; उस समय हमको पता लगता है कि जैनसमाजकी स्थिति प्राचीन कालम अब जैसी नयी ! यदि मरकारकी हमारे ऊपर यह कृपा न होती. तो हमको इतना भी पता लगना कठिन था। ___ पाठको, आज आपको उस क्षेत्रके प्राचीन गौरवका कुछ दर्शन कराया जाता है जहाँ पर अब मैसूरराज्य विद्यमान है-जहाँ पर जैनवद्री और मूडबद्री नामक जैनियोंके अतिशय तीर्थ मौजूद हैं। इस मंत्रधम पहले बहुतसे अन्वेषण हो चुके हैं। यदि उन सबको लिखा जाय तो एक मोटी पुस्तक बन जाय । यहाँ पर हमारा अभिप्राय केवल कुछ नई बातें प्रकट करनेका है. जो हालमें ही मालूम हुई हैं । इनके साथ ही अन्य मनोज्ञ बातोंका भी उल्लेख किया जाय : यदि जैनसमाजमें कुछ भी उत्साहका संचार हुआ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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