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________________ तपका रहस्य । है। उस समय उसके मल शुद्ध करनेवाले अवयव सदा गति करते रहते हैं. इससे शरीरका भीतरी मल्ल या कचरा सब थोडे ही दिनों में निकल जाता है। ज्यों ज्यों कचरा निकलता जाता है त्यों त्यों उसकी नाडी और उष्णता ठीक स्थितिमें आती जाती है । उसका श्वास सुगन्धित होता जाता है. उमको आरोग्यताकी क्षुधा लगने लगती है. और यह क्षुधा ही वास्तविक क्षुधा कहलाती है। " बादमें वह मनप्य धीरे धीरे भोजन लेना प्रारम्भ करता है और उसको वह पचान लगता है । इससे उसका मूल रोग नष्ट हो जाता है । उपवास प्रारम्भ करनेके पहले जितना बल था इस वक्त उसका अपनमें उसमे विशेष वल मालूम होता है । इसका कारण यह है कि उसके यंत्र मलरहित शुद्ध हो जाते हैं और 'इससे उन यंत्राके द्वारा पहलेकी अपेक्षा अधिक शक्ति कार्य कर मकती है। __.. उपवास. यह एक शास्त्रीय ( Scientific) योजना है कि जिसके जरिये रोग अर्थात् म्नायुआंका कचरा अलग किया जाता है। उपवासका परिणाम मदा लाभदायक होता है । लंघन अथवा भृग्व मग्ना. उस स्थितिका नाम है कि जिसमें स्नायुओंका जरूरत के मुवाफिक पोषण नहीं होता है । लंघन अथवा भूखा मरनेका परिणाम मदेव चुग होता है। उपवासका अन्त उस समय होता है. जब प्राकृतिक सुधाका लगना प्रारम्भ होता है और लंघनका प्रारंभ उस समय होता है जब कि प्रकृतिक क्षुधा भोजन चाहती है । उपवासका परिणाम शक्तिकी पुनः प्राप्ति है और भूखा मरनेका परिणाम मृत्यु है । एकके आरंभके आगे दूसरेका अन्त है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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