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जैनहितैषी
प्राप्त होती है। शारीरिक शास्त्रके विद्वान् कुछ बाहरी बातें देखकर भ्रममें पड़ गये हैं । उष्णता और शक्ति भोजन या ग्वगकमे नहीं, किन्तु निद्रा और आराममे प्राप्त होती है । नींदके समय मनुप्यशरीर, ग्रहण करनेकी स्थिति ( Receptive .ittitute ) में होता है
और उसके पुरजे अर्थात् म्नायुआदि सर्वव्यापक शनि. : All Pey. vading Cosmic Energy ) मे भर जाते हैं । इसी शक्तिमं हम रहते हैं, चलते हैं. फिरते हैं और जीवित रहते है । निदाके समय जब शरीर ग्राहकगुण धारण करता है. तब उसमें यह दाक्ति, प्रवेश करती है। यही कारण है कि जब हम प्रात:काल जागृत होते हैं. तत्र ऐसा मालूम होता है कि हममें कोई नवीन चैतन्य आगया है। ___ खुराकसे अग्नि भी उत्पन्न नहीं होती है। वह गम्मी भी नेतन्य की ही है । एक मुद्देके पेटमें चाहे जितनी खुराक क्यों न डाल दी उसमें कदापि उप्णता नहीं आयगी । नीगेगावस्थामें जितनी उष्णता चाहिए उतनी उष्णता जिन लोगों के शरीर में न होब वे यदि उपवाग करें तो उनको उतनी ही उप्णता प्राप्त हो सकती है। शरीर शक्ति उत्पन्न करनेका यन्त्र नहीं है किन्तु उसे एक म्थलग दुसरे म्पलमें पहुंचा नेका कार्य करनेवाला यन्त्र है। वह यन्त्र निद्रा और आगमके समयमें
शक्ति प्राप्त करता है और जागृतावस्थामें उसका व्यय करता है। ___ "उपवास और लंघन दोनों एक सय धिवकुल विरुद्ध दशाय हैं। उदाहरणार्थ, जब कोई व्यक्ति, प्राकृतिक नियमोंका उल्लंघन करतहै, तब उसके शरीरमें बिगाइ उत्पन्न हो जाते हैं और फिर वह उपवाम करना प्रारम्भ कर केवल जल पर ही कई दिनोंतक निर्वाह करता
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