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________________ ३३ आता है कि जब हमें आराम लेना पड़ता है, सोना पड़ता है, अथवा मरना पड़ता है | तपका रहस्य | "हम यह जानते हैं कि दिनभर परिश्रम करनेके बाद भोजन करनेको बैठजाना वैद्यकशास्त्र के विरुद्ध है और सादी आनन्ददायक कसरत ऐसे अवसर में लाभदायक होती है। मतलब यह कि शक्ति प्राप्त करनेके लिए भोजनकी आवश्यकता नहीं; किन्तु जब शक्तिकी आवश्यकता हो उस समय आराम और नींद लेनेका यत्न करना चाहिए। मनुष्यशरीर और यंत्र में यही अन्तर है । मनुष्यशरीर अपने आप ही अपनी कमीको पूरी कर लेता है पर यंत्र ऐसा नहीं कर सकता । ' एक मनुष्य से उपवास कराइए, फिर देखिए कि वह जैसा तन्दुरस्त उपवास प्रारम्भ करनेके पहले था उससे विशेष तन्दुरुस्त और विशेष शक्तिशाली दश बीम या तीस उपवास के पश्चात् होता है या नहीं: इस बात बहुत लोग हँगे परन्तु मैंने ( उक्त अमेरिकन पत्रके सम्पादकने) प्रयोग करके देखा है कि जो मनुष्य उपवास के पहले दिन जीने पर चढ़ने में भी असमर्थ थे वे तीसवें उपवास के दिन ५ माइल पैदल चल सके थे | इससे यह सिद्ध हुआ कि 'प्रतिदिनकी खुराकसे शरीरको शक्ति मिलती है' यह विश्वास भ्रमपूर्ण है । खुराक या भोजनका काम शरीरमें मारे दिनके कामोंमें जो कमी हो जाती है उसे पूरी कर देना और परिश्रम से शिथिल हुए स्नायुओं को ताजा कर देना है । खुराक शरीरको किसी भी तरह की उष्णता अथवा शक्ति नहीं दे सकती । यह उष्णता और शक्ति सर्वथा भिन्न प्रकारसे ही 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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