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जैनहितैषी -
“डाक्टर डेवी अपने सुन्दर शब्दों में कहते हैं: - ' बीमार मनुप्यवे पेटमेंसे खुराक ले लो, इससे तुम बीमारको नहीं किन्तु उसके रोगके भूखा मारनेवाले गिने जावोगे ।' इन थोडेसे शब्दोंमें उन्होंने उपवा सकी फिलासफी और सायंसका सारा रहस्य भर दिया है ।
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“बीमारकी ताक़त जाती न रहे इस लिए कुछ न कुछ खिलाते हैं रहना चाहिए । इस प्रकारके विचार कितने भ्रमपूर्ण हैं, इसका पत उक्त कथनसे सरलता के साथ लग जाता है ।
“शरीर शक्तिको एकस्थानसे दूसरे स्थानमें ले जानेवाला यंत्र है वह शक्ति इस शरीर के द्वारा दिखाई देती है । जीवन शक्ति यह एक अद्भुत शक्ति है जिसका अस्तित्व शरीर के बाहर भी संभव है और शरीरसे वह स्वतन्त्र है । जिस भाँति लेम्प काचकी चिमनी के द्वारा अपना प्रकाश बाहर डालता है उसी भाँति उक्त जीवन. शक्ति, शरीरके ज़रिये अपना प्रकाश प्रकट करती है । अर्थात वह शक्ति इस शरीरके द्वारा प्रगट होती है । यदि चिमनी धुँधली होती है, मैली होती है या किसी गहरे रंग की होती है तो उसके अनुसार लेम्पका प्रकाश भी न्यूनाधिक होता है । शरीर के सम्बन्ध में भी ऐसा ही समझना चाहिए । यदि शरीर खुराकके कचरे से भरा हो, रोगी हो अथवा लंघन कर रहा हो तो जीवन ऐसे शरीरके द्वारा भले प्रकारसे दर्शन नहीं दे सकता है । "
अभ्यंतर तप ।
बाह्य तपके उपयोग हेतु और लाभका विचार करने बाद अत्र हम ‘अभ्यंतर तप’की जाँच करेंगे। स्थूल अथवा औदारिख
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