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________________ तपका रहस्य । दूसरी तपस्याका परिणाम । पहली तपस्याके बाद मिस्टर सिंकलरके अजीर्णसम्बन्धी सारे विकार नष्ट हो गये और उनका मुख गुलाबके फूलकी भाँति दिखाई देने लगा। परन्तु इतने हीसे उन्हें सन्तोष नहीं हुआ । वे कहते हैं कि "अभी तक मैंने एक पूरी तपस्या, अर्थात् अपने आप क्षुधा लगने तक उपवास जारी रखनेकी क्रिया नहीं की थी। मेरे पैर दुखने लगे थे इससे पहली तपस्या छोड़ दी थी। अतः फिर मैंने दुबारा तपश्चरण करना प्रारम्भ किया । अबकी बार मैंने छोटी तपस्या करनेका ही विचार किया था, किन्तु क्षुधा बिल्कुल ही मिट गई, और मैंने देखा कि पहलेके समान इस बार मैं निर्बल नहीं हुआ। मैं नित्य प्रति शीतल जलसे स्नान करता और खूब अच्छी तरहसे घिसघिसकर अपना शरीर पोंछ डालता था । नित्य प्रति चार माइलका चक्कर लगाता, और फिर हलकीसी कसरत भी कर लिया करता था; किन्तु यह विचार मैं कभी नहीं करता था कि मैंने भोजन नहीं किया है, अथवा मैं उपवास करता हूँ। आठ दिनमें मैं आठ पौंड ( चार सेर ) कम हो गया। फिर आठ दिन मैंने अंजीर नारंगी खाकर बिताये; और इनसे ही मैंने अपना गया हुआ वजन पूरा किया। मुझे कभी शिरःपीडाकी शिकायत नहीं करनी पड़ी। मैं वर्षाके दिनोंमें ठंडी हवाके चलते रहने पर भी जंगलोंमें फिरता रहता था; किन्तु ठंड मुझ पर कुछ असर न करती थी। विशेष जाननेकी बात तो यह है कि मुझमें कुछ ऐसी शक्तिका संचार हो गया था कि जिससे मैं बिना कुछ किये एक मिनिट भी नहीं बैठ सकता था । यदि कहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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