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________________ जैनहितैषी __" ११ दिन मैंने इस ही भाँति बिना भोजनके केवल जलपान करके बिताये। बारहवें दिन चलते समय थकावट मालूम होने लगी; परन्तु मुझे सो-रहना पसन्द न आया। इसलिए उस दिन नारंगीका रस पीकर मैंने अपना उपवास भंग कर दिया । आगे दो दिन केवल नारंगीका रस ही पीया । तत्पश्चात् मैंने मि० बरनार मैक फेडनकी सम्मतिके अनुसार दुग्ध पीना प्रारम्भ किया । पहले दिन प्रति घंटे एकएक प्याला पीता रहा। फिर दूसरे दिन पौन पौन घंटेके अन्तरसे एकएक प्याला दुग्ध पीने लगा । इस प्रकार दिन भरमें चार सेर दूध पीजाने लगा । यद्यपि यह सारा हजम नहीं होता था, तथापि पेटके अन्दरके अवयवोंको धोकर ( Flush ) साफ कर देता था और फिर दस्तके द्वारा सारे मलको लेकर बाहिर निकल जाता था । इससे अन्दरके बारीक स्नायुओंका ( Tissues ) पोषण होकर असाधारण रातिसे बलवृद्धि और शरीरपुष्टि होने लगी। जिस दिन दूध पीना प्रारम्भ किया, उस दिन मेरा वजन सवा दोसेर बढ़ गया । तत्पश्चात् २४ दिनोंमें सोलह सेर वज़न बढ़ा। पहले तो मुझमें एक असाधारण जातिकी शान्ति उत्पन्न हुई । मानों मेरे शरीरका प्रत्येक थका हुआ तन्तु एक बिल्लीके समान, जो अँगीठीके पास बैठकर आराम लेती हो, आराम लेता हुआ मालूम हुआ । दूसरी तबदीली यह हुई कि मेरे मनकी शक्ति बहुत बढ़ गई । निरन्तर लिखने पढ्नेका कार्य करते रहनेहीमें मुझे आनन्द आने लगा; और अन्तमें शारीरिक परिश्रमका कुछ न कुछ कार्य करते रहनेका उत्साह उत्पन्न होने लगा।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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