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________________ जैनहितैषी rom हो जाने पर भी, यदि तुम उस पर कुछ ध्यान न देकर, लापरवाही करोगे तो याद रक्खो कि वह कभी न कभी एक बड़े भारी भयङ्कर रूपमें प्रगट होगा जिससे या तो तुम मरणासन्न हो जावोगे या ऐसा कोई निरन्तर रहनेवाला ( Chronic ) रोग हो जायगा कि जिससे मुक्त होना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव हो जायगा । इसमें भी ख़ास कर यदि आधुनिक प्रचलित एलोपेथी ( Allopathy ) नामक वैद्यविद्याके अनुसार इलाज कराया करोगे, तो उन इलाजोंके साथ जो थोड़ी बहुत खुराक देनेकी रीति है उससे अवश्य मरणको प्राप्त हो जाओगे।" ___ डाक्टर मैक फेडन आगे चलकर कहते हैं कि “ बीमारीके समय उदरको भोजन देकर कष्ट पहुँचाना एक प्रकारका अपराध है। इस बातको मिथ्या प्रमाणित करनेके लिए यदि कोई वैद्य ( Doctor ) अथवा वैज्ञानिक (Scientist) तत्पर हो तो उसको मैं चैलेंज ( Challenge) देता हूँ। जब तुम किसी कठिन रोगसे पीड़ित हो रहे हो, जैसे कि फेंफड़ेकी सूजन, ज्वर आदि-तब भली भाँति समझ लो कि तुम्हारी नाड़ी अभीतक तुम्हारे हाथहीमें है। ये सब तकलीफें भाँति भाँतिके चिह्न हैं। इनका अभ्यास करो, इनकी सूचनाओंको सीखो, और ज्यों ही ये चिह्न प्रगट हो, त्यों ही उपवास करना प्रारभ्म कर दो। इस एक ही . उपायसे तुम अपने पर आक्रमण करनेवाले अनेक कठिन रोगोंको रोक सकोगे, और इसके साथ ही साथ यदि अन्य सावधानियाँ भी रक्खोगे, तो ध्यान रक्खो कि रोगी होना तुम्हारे लिए असम्भवसा हो जावेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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