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________________ तपका रहस्य । ___ " मुझे याद है कि मेरे जीवनमें मुझ पर न्यूमोनियाके कई आक्रमण हुए हैं। उसके चिह्नोंसे ज्यों ही मुझे उसका आना मालूम होता था त्यों ही मैं आठ या दस दिनोंतक विस्तरों पर पड़कर कष्ट उठानेके बदले यह सच्चा उपाय अर्थात् — उपवास' करना प्रारभ्म कर देता था और अधिकसे अधिक पाँच दिनमें ही उसे बिदा कर देता था । इसही भाँति प्रत्येक कठिन रोगका इलाज हो सकता है। __" जब तुम्हें थकावट मालूम हो, सुस्ती आने लगे, अवयव निकम्मेसे जान पड़ने लगें, अथवा तुम्हारा मूत्राशय ( Kidneys ) अपना नियमित कार्य करना बन्द कर दे, और जब तुम्हारे शरीरके किसी भी भागसे विकट वरम ( सूजन ) अथवा गरमीका ज़ोर बाहर आता हुआ जान पड़े, तो उसी समय तुम्हारा फर्ज है कि तुम इन विकारोंको दवा देनेका प्रयत्न करो । इसके पहले ही कि रोग तुमको अपने जालमें फँसा लेवे तुमको चाहिए कि ऊपर कहे हुए अथवा अन्य किसी इलाजके द्वारा उसका नाश कर दो। यदि तुम यह सूचना ध्यानमें रख लोगे, तो डाक्टरोंको सैकड़ों रुपयोंका बिल न चुकाना पड़ेगा। इतना ही नहीं बल्कि कितनी ही वेदनाओंसे और कठिनाइयोंसे भी बच जाओगे और सम्भव है कि तुम्हारे जीवनके वर्षों में भी किसी कदर वृद्धि हो जाय । यदि तुम उपवासके सिद्धान्तोंका ज्ञान प्राप्त करोगे तो यह ज्ञान हजारों लाखों रुपयोंकी कीमतके जवाहरातसे भी विशेष कीमती हो जायगा । क्योंकि संसारमें पहला सुख कायाका नीरोग रहना है। " अवयवोंके कार्योंमें खलल होनेका-बाधा पडनेका नाम 'रोग' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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