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________________ २१ तुम मनकी शक्तिको विश्वासपूर्वक मानोगे तो चाहे कैसा ही रोग क्यों न हो तुम उससे मुक्त हो सकोगे और मनको स्वस्थ करनेके लिए दृढ़ संकल्प करना ही चित्तकी दूसरी शक्ति है | गरज यह कि यदि तुमको उपवाससे नीरोग बनना है तो प्रथम ही उपवास सम्बन्धी भय या चिन्ताको मनसे अलग कर दो। तपका रहस्य । I | “ उपवाससे शरीर के भीतरकी सारी गलीज अथवा विषैली चीजें निकल जाती हैं । इसका एक आश्चर्यजनक किन्तु जाना हुआ प्रमाण यह है कि उपवास के समय जिह्वाके ऊपर थरसी जमी हुई मालूम होती है और मुँहमे दुर्गंध निकलने लगती है । जिह्वा खराब हो जाती है, स्वाद बिगड़ जाता है और बदबू निकलने लगती है । ये सात प्रगट करती हैं कि उपवासकी बहुत आवश्यकता थी । पाचनक्रिया करनेवाले सारे अवयव जो अब तक उदरमें गये हुए भोजनको पचानेहीमें ध्यान देते थे और पुष्टिकारक तत्त्वोंको शरीरके प्रत्येक भाग वितीर्ण करनेका काम करते थे, वे उपवास के समय अपनी कार्यप्रणालीको तब्दील कर देते हैं। यही बात दूसरे शब्दोंम इस तरह कही जा सकती है कि वे भोजनको पचानेके बदले जहरको बाहिर निकालने का काम करने लगते हैं । उनका यह कार्य ही शरीरको नीरोग करनेका उपाय है और उपवासमे बीमारियाँ दूर होनेका कारण भी यही है । " साधरणतया नीरोग मनुष्यके मुखसे दुर्गन्ध नहीं निकलती; किन्तु यदि किसीके मुँह से दुर्गन्ध आने लगे तो समझना चाहिए कि इसके शरीरमें कुछ रोग है | रोग के सारे ऊपरी कारणोंके विदित 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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