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________________ जैनहितैषी लिए जो जो उपाय करती है उन सबमें 'उपवास' सर्वोत्कृष्ट और आवश्यकीय है । यदि हम कोई ऐसा पदार्थ ढूँढें जो कि सर्व रोगोंको हटा सके तो वह सिवाय उपवासके और कोई नहीं हो सकता क्योंकि यह सर्व उपायोंसे आगे खड़ा रहता है । रोगोंका मुख्य कारण शरीरमें उत्पन्न होनेवाले नाना भाँतिके विषोंका समूह है और उन विषोंको निकाल बाहर करनेके हेतु अन्य सारे स्वाभाविक उपायोंमेंसे, प्रथम और आवश्यकीय उपाय ‘उपवास' है। " उपवास करनेमें सबसे बड़ी कठिनता यह है कि मनको समाधान नहीं होता। वह नहीं समझता कि उपवास करना शरीरके लिए अच्छा है । अतः तुमको विश्वास रखना चाहिए कि मनुष्य उपवास करनेसे अथवा भूख रहनेसे न तो अशक्त होकर बुरी स्थितिको प्राप्त होते हैं और न क्षण मात्रमें भूमि पर गिरकर मर ही जाते हैं । इसकी लेश मात्र भी शंका न रक्खो । बहुत लोग समझते हैं, कि भूखे रहनेसे मनुष्य मर जाते हैं और उनका यह विश्वास ही उन्हें मार डालता है। उपवास और ऊपर कहे हुए विषके रहस्यसे अभिज्ञ पुरुष यदि पाँच या सात दिन तक उपवास करे, तो सचमुच ही उसका मर जाना सम्भव है । क्योंकि उसके मनमें यह विश्वास जमा रहता है कि इतने दिनतक उपवास करनेसे आदमी अवश्य मर जाता है। इससे यह विदित होता है कि मनका शरीर पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है । इस समय मैं यह जोर देकर कहूँगा कि जिस प्रकारसे उक्त बुरा कार्य मनमे हो जाता है उस ही भाँति दूसरी तरहका उत्तम कार्य भी मनसे किया जा सकता है। यदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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