SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७९ जातिका, समहत्यका उत्थान कर जीवित बनें कर्मवीरो ! मृत्युके भी बाद चिरजीवित बनें ॥ -'संशोधक।' महाकवि वल्लुवर और उनका कुरल-काव्य। .. तामिल भाषाके साहित्यमें प्राचीन जैन विद्वान् अपनी कार्तिको सदाके लिए अमर कर गये हैं। तामिल भाषाका साहित्य बहुत ही प्राचीन है। विक्रम संवतके प्रारंभकाल तकके तो कई तामिल काव्य इस समय भी प्राप्त हैं। इन काव्योंमें संस्कृतका स्पर्शतक नहीं है। ये बिलकुल स्वतन्त्र और स्वाधीन प्रतिभाके बल पर लिखे गये हैं। इनमेंसे अनेक काव्य मद्रास यूनीवर्सिटीकी आर्ट्स परीक्षाओंके पाठ्यग्रन्थ हैं। तामिलदेशवासियोंको अपने इस प्राचीन साहित्यका बहुत बड़ा अभिमान है। . जैनहितैषीके गत दूसरे अंकमें श्रीयुत टी. पी. कुप्पूस्वामी शास्त्री एम. ए. का 'प्राची नभारतमें जैनोन्नतिका उच्च आदर्श' शीर्षक एक लेख प्रकाशित हो चुका है। इस लेखमें 'तिरुक्कुरल' नामक काव्यके विषयमें कहा गया है कि " यह तामिल भाषाका सर्वमान्य महाकाव्य है। इसको बड़े बड़े लेखकोंने-जो कि भिन्न भिन्न धर्मों के अनुयायी हैं-सहर्ष उद्धृत किया है और इसका अनुवाद यूरोपकी चारसे अधिक भाषाओंमें हो चुका है। इसके कर्ताका यश इतना अधिक है कि कदाचित् हिन्दू उन्हें अपने से ही बतावें किन्तु फिर भी यह निर्विवाद सिद्ध किया जा सकता है कि वे जैन थे। इत्यादि।" इस अन्थके और इसके कर्ता महाकवि श्रीवल्लवरके विषयमें हमारे नवीन सहयोगी 'पाटलिपुत्र ' ने अपने भाद्रपद शुक्ला ९ के अंकमें एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522798
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy