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________________ ५८० विशेष प्रकाश डालनेवाला लेख प्रगट किया है। हित के पाठकोंको हम यहाँपर उसीका सारांश भेट करते हैं:___ तामिल भाषाके प्राचीन काव्योंमें 'कुरल' का सबसे अधिक आदर है । इसे 'तिरुक्कुरल ' और 'मुप्पाल' नामसे भी पुकारते हैं । इसके कर्ताका नाम 'वल्लुवर ' था। वल्लुवर ब्राह्मण नहीं थे; वे परया अथवा अन्त्यज ( शूद्र) थे। परन्तु उनका नाम ब्राह्मण नामकी भाँति 'तिरुवल्लुवर' अर्थात् 'श्रीवल्लुवर' पुकारा जाता है। वे : मद्रासके मयलापुरके रहनेवाले थे। विक्रम संवत्से कोई १०० वर्ष पीछे, वे पाण्ड्यराजके पास मदुरा ( मथुरा ) राजधानीमें पहुँचे। उस समय द्रविड़ देशमें कविताकी परीक्षा कविसंध या कविसमूह द्वारा की जाती थी। पाण्ड्यजनके दरबारमें भी एक कविसंघ था। इस कविसंघके सभासदोंमें उरयपुर ( चोलराज्यान्तर्गत), कावेरीपट्टन, चेल्लूर आदि प्रसिद्ध प्रसिद्ध स्थानोंके कवि सम्मिलित थे। इस कविसंघके कवियोंकी नामावली भी मिलती है। पाण्डयराज · उग्र-पेरुवलुथि ' और कविसमूहके समक्ष कवि वल्लुवरने अपनी रचना पेश की । संस्कृत, प्राकृत, या तामिलमें ऐसा कोई ग्रन्थ उस समय तक न था। संघने कुरल काव्यको आद्योपान्त श्रवण किया । सुनकर उसकी एकमुखसे प्रशंसा की और प्रत्येक कविने अपनी अपनी सम्मति एक एक पद्यके द्वारा पाण्डयराजके सामने प्रकाशित की । इरयनार नामक कविने कहा-" वल्लुवरकी कृति अमर होगी और अनेक पीढ़ियों तक ज्ञानदान करेगी। ” कलदा नामक कवि बोला--" छह मत हैं, परन्तु वे छहों मत वल्लुवरके मुप्पाल १ कालिदासने अपने रघुवंश काव्यमें इसका — उरगपुर ' के नामसे उल्लेख किया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522798
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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