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________________ ५७८ .. वे हमारे कर्म और चरित्र किसने हर लिये ? - हा! हमारे पूर्वजोंके साथ ही वे चल दिये ॥ क्या हुआ वह ज्ञान अनुपम ? मान क्या अब है कहीं ? हा ! जगत कहता हमें है आजकल क्या क्या नहीं। हाय ! निज अपमानका हमको न कुछ भी ध्यान है, क्या रहा है शेष जिस पर अब हमें अभिमान है ? व्याकरणमें, न्यायमें, विज्ञानमें, साहित्यमें, धर्म-दर्शनमें, चिकित्सामें, कला-कौशल्यमें । ज्ञान वह है कौनसा जिसमें न हम सुप्रवीण थे ? इस तरह तो नहिं कभी पुरुषार्थ औ बलहीन थे ? (६) बंधुजन, जिनसेनसे पंडित प्रवर हम ही तो थे, __ वादिगुरु अकलंकसे हे मित्रवर, हम ही तो थे। लेश भी निज पूर्वजोंका अब नहीं हममें अहो! अब कहीं मिलती सदुपमा आपमें उनकी कहो ? हेतु था इतिहास जो निज अभ्युदयका, लुप्त है, ___ सात तालोंमें पडा साहित्य भी तो गुप्त है। है अतुल जातीय-दुर्बलता हमारी लोकमें, हाय ! सामाजिक हमारा बल गया किस थोकमें ? छोड़कर निद्रा उठे, कुछ काम मिलकरके करें, __ ज्ञान करके प्राप्त जल्दी हीनता अपनी हरें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522798
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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