SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४९ हालों है। उसका शरीर बहुत ही कृष हो रहा है। जब कभी वह कन्याके हाथ से सारंगी ले लेती है और एक दो गते बजाकर फिर उसे दे देती है। बीच बीचमें उस नवनीत कोमला बालिकाको वह अपनी गोदीमें लेकर प्यार करने लगती है। ऐसे अलौकिक दृश्यके देखनेका सौभाग्य स्वर्गमें भी प्राप्त नहीं हो सकता है, इसलिए दयाके देवदूत उस झोंपड़ीके आसपास--एकटे हो रहे हैं और उस कन्याकी सारंगीके सुरमें अपनी दिव्य सारंगियोंका सुर मिलाकर हृदयवेधक ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं। उन देवोंसे यदि पाठक पूठेंगे तो वे उत्तर देंगे कि " वह कन्या नवाब सिराजुद्दौलाकी मातृपितृहीन निराधार लड़की है और वह स्त्री उस कन्याके पालनपोषणके लिए ही प्राणोंको धारण कर रखनेवाली सती असामान्या है। इस सती देवीकी सेवामें हर समय उपस्थित रहने में हम अपना बड़ा भारी सौभाग्य समझते हैं। विशाल हृदयवाली शत्रुकी सेवाके लिए जीवन दे देनेवाली, शीलरक्षामें गौरव. समझनेवाली, यौवन लक्ष्मी और ऐहिक सुखोंकी अपेक्षा परमार्थको बहू मूल्य जाननेवाली सती असामान्या वास्तवमें असामान्या महनीया और पूजनीया है।" -समयधर्म । गुण सीखो, अवगुण नहीं। इसमें सन्देह नहीं कि पाश्चात्य लोगोंसे हमें सैकड़ों बातोंकी शिक्षा प्राप्त करना है-विज्ञानादि विषयोंमें इस समय वे हमारे गुरुके आसनपर विराजमान हैं, परन्तु सावधान ! भारतवासियो, अपनी गुरुभक्ति इतनी न बढ़ा देना कि उससे गुरुओंके ज्ञान, विज्ञान, उद्यम साहसादि गुणोंके साथ साथ उनके अवगुण भी खिंचे हुए चले आयें और सब तरहसे तुम उन्हींके समान बन जाओ। ये तुम्हारे पूर्वकालके तपोव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522797
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy