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________________ ५४९ ओंकी अविरल धारा बह रही थी। पाठक जानते हैं कि इन आँसुओंका मूल्य कितना है ? नवाबकी सारी सल्तनत. उसके एक आँसूके मूल्यके सामने तुच्छ है ! बड़े बड़े पुण्यात्माओंके पुण्यका संचय इस सतीके इस समयके एक बुंदके आगे एक कपर्दिकाके तुल्य है ! बड़े बड़े फिलासफरोंकी फिलासफी शत्रुपत्नीके दुःखसे दुखी होती हुई इस आदर्श आर्याके आर्के तेजके आगे झख मारती है उधर देखो, हम यहाँ तर्कवितर्कमें ही उलझे हैं कि वह असामान्या सती अपनेको न सँभाल सकी और उस वेगवती नदीमें प्राणोंकी पर्वा न करके कूद पड़ी। ___ उस समय सतीका साहस और प्रयत्न देखने योग्य था। थोड़ी ही देरमें वह बेगमको उसकी लडकी सहित बड़ी बड़ी कठिनाईयोंका सामना करके डूबती उतराती हुई किसी तरह किनारे तक खींचलाई । जमीनपर आतेही उसके मुँहसे ये आशासूचक शब्द निकल पड़े:-" यदि इसके प्राण दो चार मिनिट ही और ठहर गये, तो मेरी आशा सफल होगी-मैं इसे आश्वासन और आश्रय देकर अवश्य ही सुखी कर सकूँगी।" ___ परन्तु उसकी यह आशा व्यर्थ हुई। उस जीवनकी परवा न करनेवाले भयंकर साहसका परिणाम 'शून्य'से आगे न बढ़ा । उसको होशमें लानेके सारे प्रयत्न विफल हुए बेगमको आत्मा अपनी निराधार लडकीको छोड़कर शरीरसे बाहर होगया! पूर्व बंगालके एक छोटेसे गाँवमें एक झोपडीमेंसे बड़ी ही सुरीली आवाज आ रही है। भीतर जाकर देखते हैं तो एक आठ वर्षकी सुन्दरी कन्याको एक स्त्री सारंगी बजाना सिखा रही है। स्त्री फटे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522797
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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