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जियादह छानबीन की जाय, तो जैन इतिहासकी बहुतसी गुप्त और बहुमूल्य बातें मालूम हो सकती हैं।
' संशोधक ।'
सांख्यदर्शन ।
प्रस्तावना ।
दर्शनशास्त्र भारतवर्ष के सूक्ष्र्मातिसूक्ष्म आश्चर्यजनक पाण्डित्य के जाज्वल्यमान प्रमाण हैं । दर्शनशास्त्र कई हैं । सांख्यदर्शन भी उनमें से एक है। यह दर्शन बहुत प्राचीन और बहुत महत्त्वका है। प्राचीन शैलीके विद्वानों में यद्यपि इसकी विशेष चर्चा नहीं है, परन्तु आधुनिक विद्वान् इसे बहुत आदरकी दृष्टिसे देखते हैं। वे कहते हैं कि जो हिन्दुओंके पुरावृत्त या इतिहासका अध्ययन करना चाहते हैं उन्हें सांख्यदर्शनका अध्ययन अवश्य करना चाहिए - इसके बिना उसका सम्यग्ज्ञान नहीं हो सकता। क्योंकि हिन्दूसमाजकी पूर्वकालीन गति सांख्यप्रदर्शित मार्ग पर बहुत दूरतक होती रही है । जो वर्तमान हिन्दूसमाजका चरित्र जानना चाहते हैं, उन्हें भी सांख्यका अध्ययन आवश्यक है। सांख्यमें इस चरित्रके मूलका बहुत कुछ पता चलता है ।
पृथिवी में जिस धर्म के माननेवालोंकी संख्या सबसे अधिक है-ईसाईयोंसे भी बढ़ी चढ़ी है, उस बौद्धधर्मका मूल सांख्यदर्शन ही मालूम होता है। वेदोंको नहीं मानना, निर्वाण और निरीश्वरता इन तीन बातोंसे बौद्धधर्मका कलेवर बना है और इन तीनका मूल सांख्यदर्शन है। निर्वाण सांख्यदर्शनकी मुक्तिका परिणाम मात्र है । यद्यपि सांख्यमें वेदोंके प्रति अवज्ञा स्पष्ट शब्दोंमें कहीं भी नहीं दिखलाई
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