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________________ ५२० . . . . ओर दो दो तीर्थंकर हैं; इनमेंसे एक पार्श्वनाथ हैं। नीचेके अंशमें एक लंगोटधारी मुनि हाथमें कपड़ा लिये हुए खड़े हैं; इनका नाम लेखसे 'कन्ह' मालूम होता है । इनके समीप चार स्त्रियाँ खड़ी हैं। कदाचित् उपदेश सुनने आई हैं। इनमेंसे एक नाग-कन्या मालूम होती है। क्योंकि उसके सिर पर नाग-फण हैं । यह पट महाराज वासुदेवके राजत्वकालका मालूम होता है । इसपर एक लेख इस प्रकार है: "सिद्धं सं ९५ (१) नि २ दि १८ कोट्टिय (1) तो गणातो थानियातो कुलातो वैर (तो) (शा). खातो आर्य अरह............ शिशिनि धामथाये (2) ग्रहदतस्य धि......धनहथि......" __ अनुवाद-सिद्धि । संवत् ९५ (१) में, ग्रीष्मके दूसरे महीनेमें, १८ वें दिन कोटियागण, थानियकुल, वैरशाखाके आर्य अरह....की शिष्या धामथा (2) के अनुरोधसे गृहदत्तकी पुत्री और धनथि (धनहस्तिन ) की स्त्री........का ( दान )....... __एक स्त्रीके दायें तरफ ‘अनध श्रेष्ठि विद्या' और मुनिके सिरके पास 'कन्ह श्रमणो' लिखा है। ३-एक तोरणका एक अंश मिला है जिसमें स्तूपका चित्र है। इसके साथ चार पंक्तियोंमें एक बड़ा जलूस है । कुछ लोग स्तूपका पूजन कर रहे हैं। इसमें तीन पीठिका भी बनी हैं। यह एक जैनमंदिर और अन्य जैनवस्तुओंके पास मिला है। अतः कदाचित् यह भी जैनियोंकी ही किसी इमारतका अंश है। इस पर लेख नहीं है। मथुराते जितने जैन लेख प्राप्त हुए हैं लगभग सबोंमें ही प्रतिमाओं इत्यादिका दान स्त्रियोंने किया है। यह बात प्राचीन स्त्रीसमाजकी धर्मरुचिको प्रकट करती है । इन लेखोंसे बहुतसे गणों, शाखाओं कुलों, आचार्यों इत्यादिका भी पता मिलता है। यदि इनकी और भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522797
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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