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________________ ३८२ पद्मनन्दिगुरुर्जातो बलात्कारगणाग्रणीः । पाषाणघटिता येन वादिता श्रीसरस्वती ॥ २६ ॥ -गुर्वावली । कुन्दकुन्दगणी येनोजयन्तिगिरिमस्तके। . सोवताद्वादिता ब्राह्मी पाषाणघटिता कलौ॥१४॥ -शुभचन्द्रकृत पांडवपुराण । इससे मालूम होता है कि कुन्दकुन्दस्वामीके समयमें जैनधर्ममें दिगम्बर श्वेताम्बर भेद हो चुके थे। कुन्दकुन्दस्वामीके षट्पाहुडग्रन्थमें भी इस बातका आभास पाया जाता है कि उस समय श्वेताम्बर सम्प्रः दाय था। यथाः णवि सिजई वच्छधरो जिणसासणे जइवि होइ तिच्छयरो णग्गो विमोक्खमग्गो सेसा उम्मग्गया सव्वे॥ जइ दंसणेण सुद्धा उत्ता मग्गेण सावि संजुत्ता। घोरं चरिय चरित्तं इच्छीसु ण पविया भणिया ॥ -सूत्रपाहुड। अर्थात् जिनशासनमें कहा है कि वस्त्रधारी मुनि-चाहे वह तीर्थकर ही क्यों न हो-सीझ नहीं सकता-मुक्त नहीं हो सकता। नग्न या निर्ग्रन्थ मार्ग ही मोक्षमार्ग है, शेष सब उन्मार्ग हैं। सम्यग्दर्शनसे शुद्ध स्त्रीको मोक्षमार्ग संयुक्त कही है। वह घोर चारित्रका आचरण कर सकती है, तो भी उसे मोक्षप्राप्तिके योग्य दीक्षा नहीं दी जासकती। अब यह देखना चाहिए कि दिगम्बर संप्रदायमें श्वेताम्बरसंघकी उत्पत्ति कब मानी है । देवसेनसूरिने अपने दर्शनसारमें निम्नलिखित गाथा दी है एकसये छत्तीसे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स । . सोरटे बलहीये उप्पण्णो सेवडो संघो॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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