SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८१ अर्थात् ये दोनों उस समय हुए हैं, जब अन्तिम अंगज्ञानी लोहाचार्य हो चुके थे, उनके बाद चार आरातीय मुनि हो चुके थे और उनके. . बाद अर्हद्वलि और माघनन्दि हो चुके थे। लोहाचार्यकी मृत्यु विक्रमसंवत् २१३ के लगभग हुई है। अन्तिम अंगज्ञानियोंके समान यदि विनयधरादि चार आरातीय मुनि भी केवल १८ वर्षके भीतर हुए मान लिये जावें, उनके बाद अर्हद्वलि और माघनन्दिके १०-१२ वर्ष गिन लिए जावें और उनके बाद धरसेन, भूतबलि, पुष्पदन्त, गुणधर, यतिवृषभ, उच्चारण आदि आचार्योंके होनेमें और उनके ग्रन्थोंके गुरुपरिपाटीद्वारा कुन्दकुन्दतक आनेमें केवल ५० ही वर्ष माने जावें, तो कुन्दकुन्दस्वामीका समय धिक्रमकी तीसरी शताब्दिके अन्तिम पादके लगभग निश्चित होता है। ___ कुन्दकुन्दस्वामी नन्दिसंघके एक सातिशय प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं, इस बातको प्रायः सभी मानते हैं और प्राचीन ग्रन्थोंसे भी यह बात सच मालूम होती है। अर्थात् उनके समयमें नन्दिसंघ स्थापित हो चुका था और संघोंके स्थापक अर्हद्वलि हुए हैं । नन्दिसंघकी गुर्वावलीसे यह भी मालूम होता है कि कुन्दकुन्द नन्दिसंघके तीसरे आचार्य थे, अर्थात् उनके पहले माघनन्दि और जिनचन्द्र हो चुके थे। इसलिए और नहीं तो कमसे कम अर्हद्वलि और माघनन्दिके बाद तो कुन्दकुन्दको मानना ही पड़ेगा और यह समय तीसरी शताब्दिके उत्तरार्ध तक अवश्य जा पहुँचेगा। एक कथा प्रसिद्ध है कि गिरनार पर्वत पर कुन्दकुन्दस्वामी और ..श्वेताम्बराचार्योंके बीच विवाद हुआ था और उस समय स्वामीने पाषा णकी सरस्वतीको वाचाल कर दिया था। यथाः-- Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy